भारत के प्रारंभिक वायसराय |ब्रिटिश सम्राट के अधीन भारत के प्रारंभिक वायसराय |Early Viceroy and Work in India

 ब्रिटिश सम्राट के अधीन भारत के प्रारंभिक वायसराय और उनके कार्य
Early Viceroy of India

 

ब्रिटिश सम्राट के अधीन भारत के प्रारंभिक वायसराय और उनके कार्य Early Viceroy of India

लॉर्ड कैनिंग (1856-1862)

 

  • 1856 ई. में लॉर्ड कैनिंग गवर्नर जनरल बनकर भारत आया। 1857 ई. में उसी के गवर्नर काल में 1857 ई. का विद्रोह हुआ। 
  • 1858 ई. में पारित एक्ट के अनुसार गवर्नर जनरल का पद समाप्त कर वायसराय के नवीन पद का सृजन हुआ । इस प्रकार भारत में गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग को भारत का प्रथम वायसराय नियुक्त किया गया ।
  • उसने भारत में अनेक सुधार किए, भारतीय सेना का पुनर्गठन किया। अब उसने भारतीय सैनिकों की संख्या घटाकर आधी कर दी। तोपखाने पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित किया । सैनिक व असैनिक व्यय में कमी की। 
  • पुलिस एवं न्याय विभाग मेंअनेक सुधार किए। सड़कों, रेलों तथा नहरों का निर्माण कराया
  • शिक्षा की उन्नति हेतु कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित किए। 
  • उसी के काल में भारतीय परिषद् अधिनियम 1861 ई. में पारित हुआ, जिसके अनुसार वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् में भारतीयों को स्थान दिया गया।

 

लॉर्ड एलगिन ( 1862-1863 )

 

  • लॉर्ड कैनिंग के पश्चात् 1862 ई. में लॉर्ड एलगिन भारत का वायसराय नियुक्त हुआ। इसके काल में भारत में कोई सुधार नहीं हुआ। 1863 ई. में एलगिन की मृत्यु हो गई।

 

सर जॉन लारेन्स ( 1864-1868) 

  • वायसराय सर जान लारेन्स के शासनकाल में दो भीषण अकाल पड़े। पहला अकाल 1866-67 में पड़ा, जिससे उड़ीसा, मद्रास प्रेसीडेन्सी के बेलारी, सेलम, कोयम्बटूर, दक्षिण-अरकाट और मदुरा का विस्तृत क्षेत्र प्रभावित हुआ। दूसरा अकाल 1868-69 में पड़ा, जिससे राजपूताना प्रभावित हुआ। इन अकालों में लाखों भारतीय मौत के मुँह में चले गए। इसके शासनकाल में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ।

 
लॉर्ड मेयो (1869-1872) 

वायसराय लार्ड मेयो के शासनकाल में भारत में अनेकानेक सुधार हुए। यही कारण है कि यह काल आंतरिक सुधारों के लिए जाना जाता है। 

1. अकाल के प्रकोप से रक्षा करने के लिए रेलों की व्यवस्था की तथा सिंचाई के साधनों में वृद्धि की,

2. शिक्षा प्रसार हेतु अनेक प्राइमरी पाठशालाओं की स्थापना की। 

3. सार्वजनिक निर्माण विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त किया। 

4. कृषि तथा व्यावसायिक उन्नति हेतु अनेक संबंधित विद्यालयों की स्थापना की।

 

लॉर्ड नार्थ बुक (1872-76) 

  • वायसराय लॉर्ड नार्थ ब्रुक के चार वर्षीय शासनकाल में कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ।

 
लॉर्ड लिटन (1876-1880) 

लॉर्ड नार्थब्रुक के समान ही लॉर्ड लिटन ने भी चार वर्ष ही शासन किया किन्तु उसका शासनकाल इतिहास में उसके भारत विरोधी कार्यों के लिए कुख्यात है । 


लार्ड लिटन के भारत विरोधी कार्य 

 

1. 1877 ई. में दक्षिण भारत में पड़े भीषण अकाल की उपेक्षा कर दिल्ली में एक शानदार दरबार का आयोजन किया जिसमें महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी की उपाधि मात्र प्रदान की जानी थी। इस दरबार के आयोजन में पानी की तरह पैसा बहाकर उसने अकाल पीड़ितों की उपेक्षा की। 

2. 1878 ई. में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित कर भारतीय समाचार पत्रों पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया। 

3. भारतीयों को हथियार रहित करने के उद्देश्य से उसने 1878 ई. में आर्म्स  एक्ट पारित किया, जिसके अनुसार बिना लाइसेंस के कोई भी भारतीय हथियार नहीं रख सकता था यह प्रतिबंध केवल भारतीयों पर ही लागू होता था, यूरोपियनों पर नहीं। 

4. लॉर्ड लिटन ने द्वितीय अफगान युद्ध लड़ा था। यह युद्ध ब्रिटिश हितों की सुरक्षा के लिए लड़ा गया था, इसलिए इसका आवश्यक भार भारतीय कोष पर पड़ा। 

5.ब्रिटिश व्यापारियों के आर्थिक हितों की रक्षा हेतु लॉर्ड लिटन ने विदेशी सूती कपड़े पर लगे आयात कर को हटा दिया इसका भारतीय वस्र उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।  

लिटन द्वारा किए गए उपर्युक्त भारत विरोधी कार्यों के परिणामस्वरूप भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य के विरोधी बन गए। 


लॉर्ड रिपन (1880-1884) 

लॉर्ड लिटन के पश्चात् लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। अन्य वायसरायों की तुलना में यह अधिक उदार था। अपने चार वर्ष के अल्प शासनकाल में उसने अनेक जनहितकारी कार्य किए, जिनके लिए वह भारत में लोकप्रिय भी हुआ। 


लॉर्ड रिपन के सुधार कार्य 

1. समाचार पत्रों की स्वतंत्रता - 1882 ई. में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (जिसे लॉर्ड लिटन ने पारित किया था ) को रद्द कर समाचार- पत्रों को स्वतंत्रता प्रदान की। 


2. स्थानीय स्वशासन का प्रारंभ - उदारवादी लॉर्ड रिपन स्थानीय स्वशासन के पक्ष में था । अत: उसने ग्राम पंचायतों, जिला बोर्डों और नगरपालिकाओं की ओर विशेष ध्यान दिया। 1882 ई. में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को हस्तक्षेप से दूर रखने के लिए व उन्हें अधिक अधिकार देने के लिए अनेक कानून बनाए।

 

3. जनगणना का प्रारंभ - शासन संबंधी अनेक समस्याओं के समाधान हेतु रिपन ने 1881 ई. में सर्वप्रथम जनगणना कराई। तब से अब तक प्रति दस वर्ष बाद जनगणना होती आ रही है। 

4. श्रमिकों की दशा में सुधार -1881 ई. में श्रमिकों की दशा सुधारने हेतु प्रथम फैक्ट्री एक्ट पारित कराया। इस एक्ट से श्रमिकों की दशा में सुधार हुआ। अब श्रमिकों के कार्य के 9 घण्टे निर्धारित कर दिए गए । कारखानों में काम करने वाले बाल श्रमिकों की दशा में सुधार हुआ। 

5. कर संबंधी सुधार- लॉर्ड रिपन ने समस्त भारत में नमक कर कम कर दिया। 1882 ई. में टेरिफ में से मूल्य के अनुसार 5 प्रतिशत आयात शुल्क समाप्त कर दिया। 1883 ई. में लगान के स्थायी बंदोबस्त चालू करने की योजना को समाप्त कर दिया। 


6. शिक्षा संबंधी सुधार - 1882ई. में शिक्षा में व्याप्त दोषों को दूर करने के उद्देश्य से विलियम हण्टर की अध्यक्षता में एक शिक्षा आयोग का गठन किया। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में प्राइमरी और माध्यमिक स्कूली शिक्षा की सर्वथा उपेक्षा की गई है और विश्वविद्यालयों की शिक्षा की ओर अपेक्षाकृत अधिक ध्यान दिया गया है। इस समिति की यह भी रिपोर्ट थी कि प्राइमरी शिक्षा को लोकल बोर्ड और म्यूनिसिपल बोर्ड को सौंपा जाए तथा शिक्षण संस्थाओं पर से सरकारी नियंत्रण को हटा दिया जाए । सरकार ने हण्टर कमीशन की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और उसे क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया। 


7. इलबर्ट विधेयक लॉर्ड रिपन भारत में फौजदारी दण्ड विधान के क्षेत्र में प्रचलित जातीय भेद-भाव को समाप्त करना चाहता था इस उद्देश्य से उसने अपनी कार्यकारिणी परिषद् के कानूनी सदस्य सर पी.सी.इलबर्ट से एक विधेयक पेश कराया, जिसका उद्देश्य भारतीय मजिस्ट्रेटों को यूरोपियन अपराधियों के मुकदमे सुनने का अधिकार देना था भारत में रहने वाले अंग्रेजों की आपत्ति के कारण इस विधेयक को अंत में वापस लेना पड़ा, फिर इसे संशोधित रूप में पारित किया गया संशोधित एक्ट के अनुसार यूरोपियनों की सहायता से भारतीय मजिस्ट्रेट तथा न्यायाधीश यूरोपीय मुकदमों का निर्णय कर सकते हैं। इलबर्ट विधेयक वाद - विवाद से भारतीयों की आँखें खुल गईं और राष्ट्रीय आंदोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ।

 

लॉर्ड डफरिन ( 1884-1888)

 

  • लॉर्ड रिपन के पश्चात् लॉर्ड डफरिन को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया इसके शासनकाल में कोई महत्वपूर्ण सुधार कार्य नहीं हुआ। हाँ, ए.ओ.ह्यूम को उसने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना में सहयोग अवश्य दिया। परिणामस्वरूप इसी के शासनकाल में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना हुई।

 

लॉर्ड लैस डाउन (1888-1894) 

  • लॉर्ड डफरिन के पश्चात् 1888 ई. में लॉर्ड लेस डाउन को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया इसके शासनकाल में भारतीयों को उच्च सेवाओं में रखना बंद कर दिया गया।

 

लॉर्ड एलगिन द्वितीय ( 1894-1898) 

  • लॉर्ड लेस डाउन के पश्चात् 1894 ई. में लॉर्ड एलगिन द्वितीय को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया उसके शासनकाल में सरकार की पुरानी नीतियाँ जारी रहीं। लॉर्ड एलगिन ने शिमला के एक क्लब में कहा था कि भारत को तलवार के बल पर विजित किया गया है और तलवार के बल पर ही इसकी रक्षा की जाएगी। लॉर्ड एलगिन द्वितीय के शासनकाल में 1897 ई. में बालगंगाधर तिलक को गिरफ्तार किया गया और उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाकर 18 माह के कठोर कारावास का दण्ड दिया गया ।

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