राज्य के विधानमंडल एवं विधान परिषद

 राज्य के विधानमंडल एवं विधान परिषद

विधान परिषद


जनजातियों के कल्याण के लिये पृथक मंत्री

  • संविधान के अनुच्छेद-164(1) में छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और उडीसा में जनजातियों के कल्याण के लिये एक पृथक मंत्री की व्यवस्था की गई है। प्रारंभ में यह व्यवस्था बिहार, मध्य प्रदेश और ओड़िशा के लिये थी, किंतु 94वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2006 के द्वारा बिहार को इस दायित्व से मुक्त कर दिया गया और छत्तीसगढ़ एवं झारखंड के लिये ऐसा करना आवश्यक बना दिया गया।

राज्य के विधानमंडल

  • राज्य का विधानमंडल विधानसभा, विधान परिषद वाले राज्य की दशा में विधान परिषद और राज्यपाल से मिलकर बनता है, जैसे संसद, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति से मिलकर बनती है। अतः राज्यपाल विधानमंडल का अभिन्न अंग होता है
  • जिस राज्य में विधान परिषद नहीं है, उस राज्य में उसका सृजन और जिस राज्य में विधान परिषद है उस राज्य में उसका उत्सादन करने की शक्ति संसद में निहित है न कि राज्य की विधानसभा में।

राज्यों में विधान परिषद

  • संविधान के अनुच्छेद-169 में किसी राज्य में विधान परिषद के सृजन या उत्सादन के संबंध में उपबंध है कि यदि किसी राज्य की विधानसभा अपने कुल सदस्य संख्या के बहुमत या उपस्थित और मतदान देने वाले सदस्यों की संख्या के कम-से-कम 2/3 बहुमत से संकल्प पारित करे तो संसद विधि द्वारा जिस राज्य में विधान परिषद नहीं है, वहाँ उसका सृजन और जिस राज्य में विधान परिषद है, वहाँ उसका उत्सादन/समापन कर सकेगी।
  • संसद द्वारा किसी राज्य में विधान परिषद का सृजन या उत्सादन संविधान के अनुच्छेद-368 के तहत संशोधन नहीं माना जाएगा, क्योंकि संसद इसे साधारण बहुमत से पारित करती है, किन्तु राज्य विधानसभा द्वारा संकल्प विशेष बहुमत द्वारा पारित किया जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद-171 में राज्य विधान परिषद की संरचना के संबंध में उपबंध किया गया है कि विधान परिषद वाले राज्यों में विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 1/3 से अधिक नहीं होगी, किन्तु किसी भी दशा में 40 से कम नहीं होगी। राज्य विधान परिषद की न्यूनतम संख्या का नियम जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। वहाँ इसके 36 सदस्य हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद-173 में प्रावधान है कि विधान परिषद का सदस्य बनने के लिये न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिये।
  • संविधान के अनुच्छेद-172 में प्रावधान है कि राज्य की विधान परिषद (उच्च सदन) एक स्थायी सदन है। इसका कभी विघटन नहीं होता। इसके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष की समाप्ति पर निवृत्त होते हैं।  

विधानसभा की संरचना

भारत के संविधान के अनुच्छेद-170 में राज्य की विधानसभा की संरचना के संबंध में उपबंध किया गया है कि 500 से अनधिक और 60 से अन्यून सदस्यों से मिलकर बनेगी, परन्तु कुछ राज्य इसका अपवाद हैं-

(i) गोवा      -   40 सदस्य

(ii) सिक्किम -  32 सदस्य

(iii) मिज़ोरम -  40 सदस्य

(iv) पुदुचेरी -  30 सदस्य

विधान परिषद के सदस्यों के निर्वाचन

  • संविधान के अनुच्छेद-173 में प्रावधान है कि विधानसभा का सदस्य बनने के लिये न्यूनतम आयु 25 वर्ष होनी चाहियेन कि 21 वर्ष।
  • संविधान के अनुच्छेद-171(3) में विधान परिषद के सदस्यों के निर्वाचन एवं मनोनयन के संबंध में उपबंध किया गया हैः
  • 1/3 सदस्य स्थानीय निकायों द्वारा चुने जाते हैं। इसमें नगरपालिका, जिला बोर्ड आदि आते हैं।
  • 1/12 सदस्य ऐसे स्नातकों द्वारा चुने जाते हैं, जो भारत के राज्य क्षेत्र में किसी विश्वविद्यालय से कम से कम तीन-वर्षीय स्नातक हैं।
  • 1/12 सदस्य 3 वर्ष से अध्यापन कर रहे शिक्षकों के द्वारा चुने जाते हैं। ये अध्यापक माध्यमिक स्कूलों से कम के नहीं होने चाहिये।
  • 1/3 सदस्य विधानसभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से निर्वाचित किये जाएंगे, जो विधानसभा के सदस्य न हों।
  • शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा नाम-निर्देशित किये जाएंगे। विधान परिषद के कुल सदस्यों में से 5/6 सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष तरीके से एकल संक्रमणीय मत के द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर होता है और शेष 1/6  सदस्य राज्यपाल द्वारा नाम-निर्देशित होते हैं। राज्यपाल साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आन्दोलन और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों को मनोनीत करता है।

नोटः राष्ट्रपति राज्यसभा के लिये 12 सदस्यों का नाम-निर्देशित करता है, जिसमें विज्ञान, कला एवं समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति होते हैं। इसमें सहकारी आन्दोलन को शामिल नहीं किया गया है।

विधानमंडल का उच्च सदन (विधान परिषद)

तमिलनाडु राज्य में विधानमंडल का उच्च सदन (विधान परिषद) अस्तित्व में नहीं है। वर्ष 2010 में विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया, जिसके आधार पर संसद ने तमिलनाडु विधान परिषद अधिनियम, 2010 अधिनियमित किया, किन्तु इसके लागू होने से पहले ही वर्ष 2011 में विधानसभा द्वारा इसके उत्सादन के संबंध में प्रस्ताव पारित कर दिया गया।

वर्तमान में सात राज्यों में विधान परिषद अस्तित्व में है-

 1. उत्तर प्रदेश

 2. बिहार

 3. कर्नाटक

 4. आंध्र प्रदेश

 5. तेलंगाना

 6. महाराष्ट्र


  • आंध्र प्रदेश में विधान परिषद को आंध्र प्रदेश विधान परिषद अधिनियम, 2005 के द्वारा पुनर्स्थापित किया गया।
  • आंध्र प्रदेश से अलग होकर 2 जून 2014 को तेलंगाना राज्य अस्तित्व में आया। यहाँ विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या 43 है।

राज्य की विधानसभा के सदस्य

  • भारत के उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में राज्य की विधानसभा के सदस्य भाग नहीं लेते हैं। इसके निर्वाचन में केवल संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य भाग लेते हैं।
  • भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य एवं जिस केन्द्र शासित प्रदेश में विधानसभा है, उसके निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं।
  • राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा होता है।
  • राज्य विधान परिषद वाले राज्यों में विधान परिषद के 1/3 सदस्य विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होते हैं।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम1951 

  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1954 के तहत उपबंध किया गया है कि दो या दो से अधिक वर्षों की कैद की सज़ा काट चुका व्यक्ति राज्य विधानसभा का सदस्य बनने के लिये योग्य नहीं है; या किसी व्यक्ति को अस्पृश्यता, दहेज़ प्रथा, सती प्रथा जैसे अपराधों में संलिप्त पाया जाता है तो वह राज्य विधानसभा का सदस्य नहीं बन सकता; या निर्धारित समय सीमा के अन्दर चुनावी खर्च संबंधित विवरण प्रस्तुत करने में विफल रहा है तो व्यक्ति राज्य विधानसभा का सदस्य बनने के योग्य नहीं होगा।
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में उपबंध है कि विधानसभा सदस्य बनने के लिये संबंधित राज्य की मतदाता सूची में नाम होना आवश्यक है।
  • संविधान के अनुच्छेद-192 में उपबंध है कि राज्य विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य अयोग्य है या नहीं, तो इसका निर्णय राज्यपाल करेगा और राज्यपाल का निर्णय अन्तिम होगा, किंतु निर्णय लेने से पूर्व राज्यपाल भारत के निर्वाचन आयोग (न कि राज्य निर्वाचन आयोग) से राय लेगा और उसी की राय के अनुसार कार्य करेगा।
  • संविधान के अनुच्छेद-191(2) में उपबंध है कि अनुच्छेद -191(1) के तहत प्रश्न उठता है कि राज्य विधानसभा या विधान परिषद का कोई सदस्य अयोग्य है या नहीं, इसका निर्णय विधानसभा अध्यक्ष/सभापति करता है, किन्तु उसका निर्णय अन्तिम नहीं होता है। उसके निर्णय की न्यायालय में समीक्षा की जा सकती है
  •  (किहोतो होलोहन वाद, 1992)। 

राज्य विधानमंडल

  • संविधान के अनुच्छेद-199(3) में उपबंध है कि विधानमंडल में पुरःस्थापित कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, उस पर राज्य विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय अन्तिम होगा, परन्तु यह शक्ति राज्य विधान परिषद के सभापति को प्राप्त नहीं है।
  • संविधान के अनुच्छेद-189(3) में कोरम/गणपूर्ति के संबंध में उपबंध है। विधानमंडल के किसी सदन का अधिवेशन गठित करने के लिये गणपूर्ति 10 सदस्य या सदन के सदस्यों की कुल संख्या का 10वां भाग, जो भी अधिक हो, होना आवश्यक है, अन्यथा अध्यक्ष या सभापति सदन की बैठक को स्थगित या निलंबित कर सकता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 186 के तहत विधानसभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष तथा विधान परिषद के सभापति या उपसभापति के वेतन व भत्ते संविधान की दूसरी अनुसूची के तहत राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे और राज्य विधानमंडल में इस पर मतदान नहीं होगा।
  • संविधान के अनुच्छेद-179 में राज्य विधानसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को हटाने तथा अनुच्छेद-183 में राज्य विधान परिषद के सभापति एवं उपसभापति को हटाने संबंधी प्रावधान है। विधानसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से तथा विधान परिषद के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से हटाया जा सकता है, किन्तु दोनों ही स्थितियों में 14 दिन पूर्व इसकी सूचना देना आवश्यक है। 

विधानसभा अध्यक्ष

  • संविधान के अनुच्छेद-179 (ग) के परन्तु में यह प्रावधान है कि विधानसभा के विघटन के पश्चात् भी विधानसभा अध्यक्ष अपने पद पर विधानसभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक बना रहता है।

राज्य के मुख्यमंत्री

  • संविधान के अनुच्छेद-164(1) के अनुसार मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री से सलाह पर राज्यपाल करता है। मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत ही पद धारण करते हैं।
  • संविधान में मुख्यमंत्री की नियुक्ति एवं निर्वाचन के लिये कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है।
  • राज्य का राज्यपाल राज्य का एवं राज्य का मुख्यमंत्री सरकार का मुखिया होता है।
  • राज्यपाल किसी ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकता है, जो विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य न हो, किंतु छः माह के अन्दर विधानमंडल के किसी एक सदन की सदस्यता अनिवार्य है, अन्यथा 6 माह पश्चात् वह मुख्यमंत्री नहीं रहेगा।

मुख्यमंत्री अध्यक्ष 

क्षेत्रीय परिषदः सभी क्षेत्रीय परिषदों का अध्यक्ष केंद्रीय गृहमंत्री होता है। मुख्यमंत्री संबंधित क्षेत्रीय परिषद के क्रमवार उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करता है। एक समय में इसका कार्यकाल एक वर्ष का होता है।

अंतर्राज्यीय परिषदः इसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। मुख्यमंत्री इसका सदस्य होता है।

राष्ट्रीय विकास परिषदः इसका अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री होता है। मुख्यमंत्री इसका सदस्य होता है।

राज्य योजना बोर्डः इसका अध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है।


राज्य के उप-मुख्यमंत्री

  • उप-मुख्यमंत्री को मंत्रिपरिषद में शामिल किया जा सकता है।
  • उप-मुख्यमंत्री की नियुक्ति सामान्यतया स्थानीय राजनीतिक कारणों से की जाती है।

राज्य मंत्रिपरिषद के तीन वर्ग हैं-

  •  कैबिनेट मंत्री
  •  राज्यमंत्री
  •  उपमंत्री

 विधानसभा अन्य मत्वपूर्ण तथ्य 

  • संविधान के अनुच्छेद-167 में राज्यपाल के प्रति मुख्यमंत्री के कर्त्तव्यों के संबंध में उपबंध है। इस अनुच्छेद के अनुसार प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्त्तव्य होगा कि वहः
  • राज्य के कार्यों एवं प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों से राज्यपाल को सूचित करे।
  • राज्य के कार्यों एवं प्रशासन संबंधी एवं विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी राज्यपाल मांगे, वह दे।
  • किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने निर्णय कर दिया है, किंतु मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया है, राज्यपाल द्वारा अपेक्षित किये जाने पर मंत्रि परिषद के समक्ष विचार के लिये रखे।
  • संविधान के अनुच्छेद-163
  • राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति को छोड़कर राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देने के लिये एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा।
  • राज्यपाल के विवेकाधीन कार्यों के संबंध में उसका निर्णय अन्तिम होगा और उसे कहीं प्रश्नगत नहीं किया जा सकता।
  • मंत्रियों द्वारा राज्यपाल को दी गई सलाह की किसी न्यायालय में जाँच नहीं की जा सकती।
  • संविधान के अनुच्छेद-164 में निम्नलिखित उपबंध किये गए हैं-
  • मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करेंगे।
  • राज्य की मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी, परंतु मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या 12 से कम नहीं होगी। इसे 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा जोड़ा गया।
  • संविधान के अनुच्छेद-165 में राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति के संबंध में उपबंध है।
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  • संविधान के अनुच्छेद-177: प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को राज्य विधानसभा या राज्य विधान परिषद वाले राज्य की दशा में दोनों सदनों में और विधानमंडल की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, में बोलने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है, किन्तु मत देने का अधिकार नहीं है।
  • संविधान के अनुच्छेद-187: राज्य विधानमंडल के सचिवालय के संबंध में उपबंध है।
  • संविधान के अनुच्छेद 189: राज्य विधानसभा के अध्यक्ष या राज्य विधान परिषद के सभापति प्रथमतः मत नहीं देते, किन्तु मत बराबर होने की दशा में निर्णायक मत (Casting Vote) देते हैं।
  • इसी अनुच्छेद में सदन की गणपूर्ति के संबंध में उपबंध है।
  • संविधान के अनुच्छेद-190: राज्य विधानसभा या विधान परिषद वाले राज्य में विधान परिषद का कोई सदस्य सदन के अनुमति के बिना लगातार 60 दिनों तक उसकी सभी बैठकों से अनुपस्थित रहता है, तो उस सदन से उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी। इन 60 दिनों की अवधि की गणना में उस अवधि को शामिल नहीं किया जाएगा, जिसके दौरान सदन का सत्रावसान या निरन्तर चार से अधिक दिनों के लिये स्थगित रहता है।
  • भारत में प्रतिवर्ष 13 फरवरी को भारत की प्रथम राज्यपाल सरोजनी नायडू की स्मृति में महिला दिवस मनाया जाता है।
  • भारत के संविधान के भाग-6 में राज्य सरकार के संबंध में उपबंध किया गया है। यह उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर भारत के सभी राज्यों पर लागू होता है। संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्ज़ा दिया गया है। उसका अपना अलग संविधान है।
  • कोई भी व्यक्ति एक से अधिक बार भारत के किसी राज्य का राज्यपाल बन सकता है।
  • स्वतंत्र भारत की पहली महिला राज्यपाल या भारत की प्रथम महिला राज्यपाल सरोजनी नायडू थी।
  • संविधान के अनुच्छेद-177 के तहत प्रत्येक मंत्री या राज्य के महाधिवक्ता को राज्य की विधानसभा या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में, दोनों सदनों में और उसके किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोलने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है, किंतु वे मत नहीं दे सकते।
  • सुचेता कृपलानी वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी। वह भारत की बनने वाली पहली महिला मुख्यमंत्री थी।
  • मुख्यमंत्री का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है। वह विधानसभा की कार्यविधि तक पद पर बना रहता है। चूंकि जम्मू-कश्मीर विधानसभा की कार्यावधि छः वर्ष है, इसलिये वहाँ का मुख्यमंत्री छः वर्ष तक रहता है।
  • 6ठे संविधान संशोधन अधिनियम, 1965 के द्वारा जम्मू-कश्मीर के कार्यकारी अध्यक्ष सदर-ए-रियासत का पदनाम बदलकर राज्यपालकर दिया गया और प्रधानमंत्री का पदनाम बदलकर मुख्यमंत्री कर दिया गया।
  •  91वें संविधान संशोधन अधिनियम2003 के द्वारा  दल-बदल अधिनियम को सशक्त बनाया गया तथा मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की कुल संख्या सीमित की गई।
  • 92वें संविधान संशोधन अधिनियम2003 के द्वारा आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाएँ जोड़ी गईं।
  • 93वें संविधान संशोधन अधिनियम2006 के द्वारा निजी शिक्षण संस्थानों में स्थानों के आरक्षण के संबंध में उपबंध किया गया

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