ताम्रलिप्ति एतेहासिक स्थल | Tamra lipti Historic Place


Tamra lipti Historic Place


ताम्रलिप्ति Tamra Lipti

यह प्राचीन बंदरगाह नगर, भारत के पूर्वी समुद्र तट पर स्थित था, किन्तु कालान्तर में गंगा का मार्ग बदल जाने से समुद्र तट से दूर हो गया। वर्तमान में इस स्थान पर पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में रूपानारायन नदी एवं हुगली नदी के संगम से लगभग 19.3 किलोमीटर ऊपर तामलुक नगर स्थित है। कनिंघम ने भी ऐसा माना है कि इसे प्राचीनकाल में ताम्रलिप्ति, ताम्रलिप्तक, दामलिप्त आदि नामों से जाना जाता था। उस युग में इसकी प्रसिद्ध व्यापार, वाणिज्य, शिक्षा एवं बौद्ध धर्म के केन्द्र होने की वजह से थी।

ताम्रलिप्ति  एतेहासिक स्थल प्रमुख तथ्य

  • दशकुमारचरित से पता चलता है कि लंका, यूनान, जावा तथा चीन जाने वाले व्यापारी इस बंदरगाह से यात्राएं करते थे।
  • पाटलिपुत्र से तामलुक सड़क मार्ग द्वारा सीधा जुड़ा होने से इसका बड़ा महत्व था। 200 ई.पू. से 300 ई. तक के काल में इस बंदरगाह ने भारत तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच सम्बन्धों को स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
  • महावंश से यह ज्ञात होता है कि अशोक के धर्म प्रचारकों ने लंका के लिए इसी बंदरगाह से प्रस्थान किया था।
  • इस नगर की व्यापारित महत्ता चीनी यात्री इत्सिंग के विवरणों के साथ-साथ भारतीय ग्रंथों में भी मिलती है।
  • इत्सिंग लिखता है कि चीन तथा भारत का व्यापार इस पोताश्रय के माध्यम से किया जाता था। स्वयं इत्सिंग भी इस बंदरगाह पर रूका था।
  • प्रसिद्ध चीनी यात्री फाह्यान, जिसने 401 से 410 ई. के बीच भारत का भ्रमण किया था, यहीं से जलपोत पर सवार होकर स्वदेश वापस गया था।
  • ताम्रलिप्ति में पॉचवीं सदी ईसा पूर्व से ही एक प्रसिद्ध महाविद्यालय स्थापित हो चुका था। फाह्यान, युवानच्वांग, इत्सिंग आदि चीनी यात्रियों ने यहां ठहर कर भारतीय ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन किया था।
  • फाह्यान के समय यहाँ 24 विहार थे, जिनमें दो सहस्र भिक्षु निवास करते थे।
  • सातवीं सदी में युवानच्वांग ने यहाँ केवल 10 विहार और एक सहस्त्र भिक्षुओं का ही उल्लेख किया है। तत्तपश्चात् इत्सिंग ने अपने भारत यात्रा वृतांत में इस महाविद्यालय का सविस्तार वर्णन किया है। वह नौ वर्ष तक यहाँ अध्ययन करता रहा।
  • 1940 में पुरातत्व विभाग द्वारा तामलुक के प्राचीन स्थल पर उत्खनन कार्य किया गया।
  • तामलुक में उपलब्ध नमूनों से कोई निश्चित तिथि बताना कठिन है, किन्तु निश्चय ही ये मिस्र एवं भारतीय संबंधों के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

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