स्वतंत्रता आंदोलन में चर्चित व्यक्तित्व | Famous personalities of india in hindi for mppsc exams

Famous personalities of india in hindi for mppsc exams

आधुनिक भारत एवं स्वतंत्रता आंदोलन में चर्चित व्यक्तित्व

अरबिन्द घोष (1872-1950 ई.)

अरविन्द घोष का जन्म बंगाल में हुआ। उनकी शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई। सिविल सर्विज न लिए जाने पर वे महाराजा बड़ौदा के प्रायवेट सेक्रेटरी बन गए। उनका संपर्क क्राँतिकारियों से था तथा 1908 के अलीपुर केस में उन्हें अभियुक्त बनाया गया। 1910 में ब्रिटिश भारत को छोड वह पांडिचेरी में बस गए तथा वहाँ एक आश्रम की स्थापना की। अरबिन्द घोष एक योगी, दार्शनिक विद्वान थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- ए लाई ऑफ डिवाइन, द सोस साइकिल, तथा द आइडियल ऑफ ह्यूमन यूनिटी।

ईश्वरचंद्र विद्यासागर

1820 में बंगाल के मिदनापुर जिले में इनका जन्म हुआ। संस्कृत के वे प्रकाण्ड पंडित थे। पाश्चात्य शिक्षा के विकास में तथा स्त्री शिक्षा के प्रसार में उनका महत्वूपर्ण योगदान रहा। वे महान् समाज सुधारक थे। विधवा पुनर्विवाह के क्षेत्र में उन्होंने अथक प्रयास कर सफलता पाई। इसे वह अपने जीवन की महानतम उपलब्धि मानते थे।

दयानंद सरस्वती

आपका जन्म गुजरात में हुआ था। आपके बचपन कानाम मूलशंकर था। आपने वेदों की ओर लौटो का नारा दिया तथा हिन्दू धर्म में सुधारवादी रूख अपनाया तथा आर्य समाज की स्थापना की।

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में कलकता में हुआ था। आपका बचपन का नाम नरेन्दनाथ था। आप रामकृष्ण के परम श्ष्यि थे। 1893 में अमरीका के शिकागो नगर में आयोजित सर्व धर्म सम्मेलन में अपने भाषण से सभी को प्रभावित किया। वहाँ उन्होंने वेंदांत समाज की स्थापना की। भारत में कर्मकाण्ड, अंधविश्वास आदि का विरोध किया। 1897 में रामकृष्ण मिशन तथा 1899 में प्राचीन मठ को वैल्लौर में स्थापित किया। 39 वर्ष की अल्पायु में आपका निधन हो गया।

रवीन्द्रनाथ टैगोर

रविन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, चित्रकार, दार्शनिक थे। आपका जन्म 8 मई 1861 को कलकत्ता में हुआ था। 1901 में आपने बोलपुर में ब्रह्मचर्य आश्रम नामक एक आवासीय विद्यालय की स्थापना की, जो शांति निकेतन के नाम से प्रख्यात हुई तथा 1921 में विश्व भारती में परिणित हुई। 1910 में अपने प्रसिद्ध ग्रंथ गीतांजलि लिखा , द रिलीजन ऑफ मैन, क्रिएटिव यूनिटी एण्ड पर्सनालिटी आदि की आपके प्रसि़द्ध दार्शनिक ग्रंथ हैं। साहित्य सेवा के लिए आपको नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया।

गोपाल कृष्ण गोखले

गोपाल कृष्ण गोखले उदारवादी दल के प्रमुख नेता थे। नमक कर के उन्मूलन, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के प्रसार सरकारी नौकरियों में चुनाव तथा स्वतंत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की माग के वे समर्थक थे। 1905 में आपने सर्वेण्ट ऑफ इंडिया सोसायटीकी स्थापना की, जिसका लक्ष्यम मातृभाषा के प्रति आदर की भावना उत्पन्न करना था।

महात्मा गांधी (1869-1948)

आपका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात स्थित काठियावाड़ के पोरबंदर में हुआ था। इंग्लैण्ड में कानून का अध्ययन करने के बाद आप बैरिस्ट बने। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का नेतृत्व किया। 1915 में भारत लौटे और असहयोग आंदोलन व सविनय अवज्ञा आंदेालन का नेतृत्व किया। देश को स्वतंत्र कराने में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोड़से क गोली से आप मारे गए। आपको राष्ट्रपिता कहकर पुकारा जाता है।

जवाहर लाल नेहरू

आपका जन्म 14 नंवबर 1889 को उत्तरप्रदेश स्थित इलाहबाद नगर में हुआ था। आपने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। स्वतंत्र भारत के आप प्रथम प्रधानमंत्री बने। आप पंचशील सिद्धांतो के प्रणेता, निर्गुट आंदोलन के जन्मदाता, विश्व शांति व संयुक्त राष्ट्र के प्रबल पक्षधर थे। आपकी प्रसिद्ध पुस्तक डिसकवरी ऑफ इंडिया एवं ग्लिम्पसेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री हैं।

सुभाष चंद्र बोस

आपका जन्म 23 जनवरी 1897 को बंगाल के चौबीस परगना जिले में कोडोलिया नामक गांव में हुआ था। आप उग्र विचारधारा के समर्थक एवं महान क्रंातिकारी थे। आपने गांधीजी की नीति का विरोध किया तथा फारवर्ड ब्लाककी स्थापना की। आजाद हिन्द फौज को रूबरू बनाने को श्रेय भी आपको जाता है। तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगाआपका प्रसिद्ध नारा था। आपको लोग नेताजी कहकर पुकारते हैं।

भगतसिंह

भगतसिंह की गणना महान् क्रांतिकारियों में की जाती है। वे जीवन-पर्यंत भारत को स्वतंत्र कराने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न रहे। जब अंग्रेजों की लाठियों की चोट से लाल लाजपत राय की मृत्यु हो गई , तो क्रंातिकारियों ने बदला लेने का निश्चय किया। भगतसिंह एवं राजगुरू ने लाला लाजपत राय की मृत्यु  के जिम्मेदार व्यक्ति साण्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी। अंग्रेजों ने भगतसिंह को गिरफ्तार  कर मृत्यु-दण्ड दिया, किन्तु वे तनिक भी विचलित नहीं हुए और हंसते-हंसते फाँसी के फंदे पर झूल गए।

मौलाना अबुल कलाम आजाद (1890-1958)

भारत सरकार के भूतपवू्र शिक्षा प्राकृतिक संसाधन व वैज्ञानिक शोध मंत्री, मौलाना अबुल कलाम आजद ने अल अजहर विश्वविद्यालय , कहिलरा में अध्यात्मवाद की शिक्षा ग्रहण की, अनेक देशो का भ्रमण किया। कांग्रेस अध्यक्ष बने। संविधान सभा के सदस्य रहे। मुस्लिम अध्यात्मवाद पर अनेक पुस्तकें लिखी।उनकी पुस्तक इंडिया विन्स फ्रीडमबहुत विवादास्पद रही। फरवरी 1958 में आपका निधन हो गया।

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर (1893-1956)

आप हरिजनो के मसीहा, 1942-46 तक वायसराय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य रहे। 1947-51 तक भारत सरकार के विधि मंत्री रहे। अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र व राजनीतिशास्त्र पर आपने अनेक पुस्तकों की रचना की। आप संविधान सभा के सदस्य और संविधान प्रारूप समित के अध्यक्ष रहे।

रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1835 ई. को हुआ था। उनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपत तांबे था। रानी लक्ष्मीबाई का वास्तविक नाम मणिकर्णिका था किंतु प्यार से सब उन्हें मनु कहते थे तथा उन्हें छबीली कहकर भी पुकारते थे। उस समय बाजीराव के महल मे उनके दत्तक पुत्र नाना साहब एवं उनके मित्र तात्या टोपे का पालन पोषण हो रहा था। अतः मनु  का बचपन नानासाहब एवं तात्या टोपे के साथ बीता। इस कारण मनु ने घोड़े की सवारी, तैरना तथा अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना सीख लिया। झाँसी के महाराज गंगाधर की पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। बाजीराव द्वारा मनु का विवाह गंगाधर महाराज से करा दिया गया एवं मुन रानी लक्ष्मीबाई कहलाने लगी।

महाराज गंगाधर की मृत्यु के पश्चात गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने दामोदरराव (लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र) को गंगाधर का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया तथा 7 मार्च 1857 ई. को झाँसी को अंग्रेजी राज्य का अंग घोषित कर दिया तथा महारानी लक्ष्मीबाई के लिए 5 हजार वार्षिक पेंशन निर्धारित कर दी।

झाँसी पर अधिकार करने के अतिरिक्त अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाइ्र के समक्ष अनेक समस्या खड़ी कर दी। अतः झांसी की सेना में असंतोष फैल गया और 7 जून 1857 को झाँसी में विद्रोह हो गया। अंग्रेजो को का्रतिकारियों के समक्ष झुकना पड़ा और झाँसी पर पुनः रानी लक्ष्मीबाई का अधिकार हो गया। उन्होंने 10 माह तक शांतिपूर्वक शासन किया। मार्च 1858 ई. में अंग्रेज सेनापति जनरल हृाूरोज झाँसी के समीप पहुंचा व उसने लक्ष्मीबाई को आत्मसर्पण करने को कहा। रानी ने इसे ठुकराते हुए रणक्षेत्र में मिलने का संदेश भेज दिया। रानी ने अंग्रेजों का डटकर सामना किया। 10 दिन तक दोनों ओर से भयंकर युद्ध हुआ। इसी समय ग्वालियर व टीकमगढ़ राज्यों में अंग्रेजी सेना की स्थिति अत्यंत खराब हो गई। रानी की वीरता देखकर अंग्रेज आश्चर्यचकित रह गये।

कुछ समय पश्चात् रानी की सेना का सामन स्मिथ की सेना से हुआ परंतु इस बार अंग्रेज बड़ी सेना के सथ थे और रानी की सेना छोटी थी। अतः वह टिक न सकी और उन्हें भागना पड़ा, किन्तु एक नाले के सामने जाकर उनका घोड़ा रूक गया। वहीं पर एक गोली उन्हें लगी और एक तलवार का वार भी उन्हें लगा जिससे वहीं वीरांगना की मृत्यु हो गई। भारतीय इतिहास के लिए वह काला दिवस 18 जून 1858 ई. का था। मृतयु के समय रानी पुरूषों के भेष में थीं। रानी की वीरता का सम्मान अंग्रेज भी करते थे। उनके लिए हृाूरोज ने कहा था कि विद्रोहियों में यदि कोई जवामर्द था तो वह लक्ष्मीबाई थी।

तात्या टोपे (रामचंद्र पांडुरंग)

तात्या टोपे का जन्म अहमदाबाद जिले के येवला नामक गाँव में एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ था। तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचन्द्र था तथा उनके छोटे भाई का नाम गंगाधर था। गंगाधर उन्हें तात्या कहकर बुलाते थे। इसी कारण उनका नाम तात्या पड़ गया । तात्या के परिवार का नाम पहले मेवलेकर था। मराठा शासक बाजीराव ने तात्या से प्रसन्न होकर उन्हें रत्न जडि़त टोपी उपहार मे दी। तात्या ने जब वह टोपी पहनी तो बाजीराव ने उन्हें टोपी कहकर पुकारा और इस रह सभी उन्हें टोपी कहने लगे और बाद में उन्हें टोपे कहा जाने लगा।

तात्या के पिता पांडुरंग भट्ट बाजीराव के यहां पुरोहित थे। उनकी माता का नाम रूक्माबाई था। बाजीराव के कोई पुत्र न होने से उन्होंने नानासाहब को पुत्र बना लिया था। तात्याटोपे नाना साहब से 10 वर्ष बड़े थे। नाना साहब, तात्याटोपे तथा मरोपत की पुत्री मनु का पालन पोषण साथ-साथ हुआ था।

अंग्रेजी शोषण नीति के कारण भारतीय अंग्रेजी शासन से परेशान हो रहे थे। 1857 ई. में भारतीयों का सब्र का बांध टूट रहा था। अतः भारत में अंग्रेजी शासन के विरूद्ध क्रांति करने के लिए नाना साहब, टोपे व उनके साथियाों ने योजना बनाई। इस क्रांति को सफल बनाने के लिए एक संगठन का गठन किया गया। इस संगठन के सदस्यों ने भेष बदलकर अंग्रेजी छावनियों में जाना प्रारंभ कर दिया। वहां कके सदस्य भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के विरूद्ध भड़काते थे। तात्या टोपे ने इस संगठन का संचालन इतनी कुशलता से किया कि अंग्रेजी सरकार को इस संबंध में कुछ पता न चला।

तात्या ने गनीमी कावा पद्धति को अपनाते हुए एक नवीन क्रंातिकारी राज्य की स्थापना की जिसके प्रमुख केन्द्र शिल्पी व जलालाबाद बनाये गये। कुछ समय पश्चात तात्या ने अंग्रेजो से संघर्ष कर कानपुर पर अधिकार कर लिया। अंततः अंग्रेजो ने कूटनीति का सहारा लिया व नरवर के राजा मानसिंह की सहायता से तात्या टोपे को 7 अप्रैल 1859 को गिरफ्तार कर लिया। तात्या टोपे पर 15 अप्रैल 1859 को शिवपुरी के सैनिक न्यायालय में मुकदमा चलाया गया। इस सैनिक न्यायालय का अध्यक्ष कैप्टेन बांग था जिसने उसी दिन तात्या टोपे को मुत्युदण्ड की सजा सुना दी। इसी न्यायालय के आदेशानुसार 18 अप्रैल 1859 को शाम 7 बजे तात्याटोपे को मृत्युदण्ड दिया गया।

चन्द्रशेखर आजाद Chandra Shekhar Aajad

चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 ई. को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भांवरा गांव में हुआ था। उनके पिता ब्राहम्ण थे जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। चंद्रशेखर बचपन से ही अत्यंत साहसी एवं खेलकूद  में रूचि रखते थे। चंद्रशेखर के पिता उन्हें अपने साथ ही रखना चाहते थे किंतु चंद्रशेखर उच्च अध्ययन की अपनी तीव्र इच्छा को दबा न सके। घर पर बिना बताये ही काशी पहुंचकर संस्कृत का अध्ययन करने लगे। चंद्रेशखर को विद्वानों के व्याख्यान सुनना व रामायण, महाभारत का अध्ययन करना अत्यंत पंसद था। चंद्रशेखर पर गांधी जी द्वारा चलाये गये असहायोग आंदोलन का बहुत प्रभाव पड़ा तथा वे शिक्षा ग्रहण करना छोड़कर आंदोलन में कूद पड़े। उस समय चंद्रशेख की आयु मात्र 14 वर्ष थी। इसी आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया उन्होंने अपना नाम आजादपिता का नाम स्वतंत्रतथा निवास स्थान जेलबनाया। इस पर क्रोधित होकर मजिस्ट्रेट ने उन्हें 15 बेंत मारे जाने की सजा दी। प्रत्येक बेंत पर वंदेमातरम् व महात्मा गांधी की जय के नारे लगाते रहे। इस घटना ने उन्हें काफी लोकप्रिय बना दिया।

उन्होंने उत्तर भारत व बंगाल के क्रांतिकारियों को संगठित करने के लिए एक संगठन बनाया जिसे हिन्दुस्तान रिपब्लिक ऐसोसिएशनकहा गया । इस संगठन को कार्य करने हेतु धन की आवश्यकता थी, अतः संगठन ने इस हेतु सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाइ्र। इस उद्देश्य से सितम्बर 1925 ई. को काकोरी में ट्रेन से जा रहा खजाना लूट लिया गया। इस घटना में भाग लेने वाले अधिकतर क्रांतिकारियों को गिरफ्तार  कर लिया गया  किंतु चन्द्रशेखर को अंग्रेज गिरफ्तार नहीं कर सके। आजाद पुलिस से बचने के लिए वेष बदलकर 1925 से 1928 तक इधर-उधर घूमते रहे।

1928 में साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी सॉण्डर्स की हत्या भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद  व उनके साथियों ने की। आजाद छुपकर क्रांतिकारी कार्य करते रहे। लेकिन 27 फरवरी 1931 ई. को इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में किसी व्यक्ति की सूचना पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया। वहाँ कई घण्टे तक पुलिस से उनका संघर्ष होता रहा। अंत में एक गोली बचने पर चन्द्रशेखर ने स्वयं की पिस्तौल से अपने ऊपर गोली चला ली और शहीद हो गये।

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