सिन्धु घाटी सभ्यता | Sindhu Ghati MP Psc Gk in Hindi


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सिन्धु घाटी सभ्यता 3250-1750 B.C.

  • लगभग 5000 वर्ष पूर्व सिन्धु घाटी या हड़प्पा सभ्यता का उद्भव ताम्र पाषाणिक पृठभूमि पर भारतीय उप महाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ था।
  • सिन्धु घाटी सभ्यता के सम्बन्ध में प्रारंभिक जानकारी 1826 में चार्ल्स मेसन ने दी थी।
  • वर्ष 1921 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन राय बहादुर दयाराम साहनी ने वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब के मांटगोमरी जिले में रवि नदी के बाएं तात पर स्थित हड़प्पा नामक स्थल का अन्वेषण करके सर्वप्रथम सिन्धु सभ्यता के साक्ष्य उपलब्ध कराये थे।
  • सिन्धु सभ्यता के सम्बन्ध में सर्वप्रथम हड़प्पा नमक स्थल से साक्ष्य उपलब्ध होने के कारण इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
  • 20वीं सदी के आरंभ तक इतिहासकारों एवं पुरातत्ववेत्ताओं ने यह धारणा थी की वैदिक सभ्यता ही भारत की प्राचीनतम सभ्यता है, किन्तु 1921 और 1922 में क्रमशः हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नमक स्थलों की खुदाई से यह स्पष्ट हो गया की वैदिक सभ्यता से पूर्व भी भारत में एक अन्य सभ्यता भी अस्तित्व में थी।
  • मार्टिमर व्हीलर, डी. डी. कौशाम्बी, गार्डन चाइल्ड सहित कई अन्य विद्वानों ने सिन्धु सभ्यता की उत्पत्ति मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता से मानी है।
  • रोमिला थापर तथा फेयर सर्विस जैसे विद्वान् सिन्धु सभ्यता की उत्पत्ति ईरानी बलूची ग्रामीण संस्कृति से मानते, जबकि अमलानंद घोष जैसे विद्वान् सिन्धु सभ्यता की उत्पत्ति सोथी संस्कृति (भारतीय) से मानते हैं।
  • प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है।
  •  अभी तक कुल खोजों में से 3 प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है।

सिन्धु घाटी सभ्यता काल निर्धारण 

  • 1931 में सर्वप्रथम जॉन मार्शल ने सिन्धु सभ्यता की तिथि 3250 ई.पू. से 2750 ई.पू. निर्धारित की है।
  • रेडियो कार्बन डेटिंग जैसी वैज्ञानिक पद्धति द्वारा सिन्धु सभ्यता की तिथि 2500 ई.पू. मानी गयी है। रेडियो कार्बन डेटिंग निर्धारण पद्धति की खोज वी. एफ. लिवि द्वारा की गयी थी।
  • नवीनतम आंकड़ों के विश्लेषण के अधर पर यह माना गया है की सिन्धु सभ्यता का अस्तित्व लगभग 400-500 वर्षों तक बना रहा तथा 2200 ई. पू. से 2000 ई.पू. के मध्य काल तक इस सभ्यता का परिपक्व चरण था।


 सिन्धु घाटी सभ्यता के सर्वधिक प्रसिद्द स्थल

  • पश्चिमी स्थल- सुत्कांगेडोर
  • पूर्वी स्थल- अलमगीरपुर
  • उत्तरी स्थल- मांडा
  • दक्षिणी स्थल- दैमाबाद 


 सिन्धु घाटी सभ्यता   विस्तार 


  • सिन्धु सभ्यता का विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने भगतराव तक और पश्चिम में मकरान तट से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर (मेरठ) तक है।
  • इस सभ्यता का सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार है, जिसका क्षेत्रफल 13 लाख वर्ग किमी. है
  • इस सभ्यता के स्थल भारत और पाकिस्तान में पायें जाते हैं।
  • पाकिस्तान में मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चन्हुदड़ो, बालाकोट, कोटदीजी, आमरी, एवं डेराइस्माइल खां आदि प्रमुख स्थल हैं।
  • भारत के प्रमुख स्थल है रोपड़, मांडा, अलमगीरपुर, लोथल, रंगपुर, धौलावीरा, राखीगढ़ी आदि हैं।
  • हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो को स्टुअर्ट पिग्गट ने एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियां कहा था।

सिन्धु घाटी सभ्यता के निर्माता 

सिन्धु घाटी के सभ्यता के निर्माताओं एवं  संस्थापकों के सम्बन्ध में हमारी जानकारी केवल समकालीन खंडहरों से प्राप्त मानव कंकाल एवं खोपड़ियाँ हैं।
प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है की मोहनजोदड़ों की जनसँख्या में चार प्रजातियाँ शामिल थीं।
  1. प्रोटो ऑस्ट्रेलॅायड
  2. भूमध्यसागरीय
  3. अल्पाइन
  4. मंगोलॅायड

कुछ विद्वानों के अनुसार इस सभ्यता के निर्माता इस प्रकार थे-
  •  मोहनजोदड़ो के लीग मुख्यतः भूमध्यसागरीय प्रजाति के थे।
  • अधिकांश विद्वान् इस मत से सहमत है कि द्रविड़ ही सिन्धु सभ्यता के निर्माता थे।


सिन्धु घाटी सभ्यता नगर नियोजन


  • सिन्धु या हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उसकी नगर योजना है। इनकी नगर योजना में सड़के सीधी एवं नगर सामान्य रूप से चौकोर होते थे।
  • सड़के और गलियां निर्धारित योजना के अनुसार बनायीं गयी थीं। सड़के एक दुसरे को समकोण पर काटती हुई जाल सी प्रतीत होती थीं।
  • आमतौर पर नगरों में प्रवेश पूर्वी सड़क से होता था और जहाँ यह सड़क प्रथम सड़क से मिलती थी उसे ऑक्सफ़ोर्ड सर्कल कहा गया है।
  • जल निकासी प्रणाली सिन्धी सभ्यता की अद्वितीय विशेषता थी, जो अन्य किसी भी समकालीन सभ्यता में प्राप्त नहीं होती है।
  • सड़कों के किनारे की नालियां ऊपर से ढकी होती थीं। घरों का गंदा पानी इन्हीं नालियों से होता हुआ नगर की मुख्य नाली में गिरता था।
  • नालियों के निर्माण में मुख्यतः ईंटों और मोर्टार का प्रयोग किया जाता था, कहीं कहीं पर चूने और जिप्सम का भी प्रयोग मिलता है।
  • भवनों के निर्माण मुख्यतः पक्की ईंटों का प्रयोग होता था, लेकिन कुछ स्थलों जैसे कालीबंगा और रंगपुर में कच्ची ईंटों का भी प्रयोग किया गया है।
  • सभी प्रकार की ईंटें निश्चित अनुपात में बनायीं गयीं थीं और अधिकांशतः आयताकार थीं। इनकी लम्बाई, चौड़ाई, और मोटाई का अनुपात 4:2:1 था।
  • सिन्धु सभ्यता के प्रायः सभी नगर दो भागों में विभाजित थे पहला भाग प्राचीर युक्त दुर्ग कहलाता था, और दूसरा भाग जिसमे सामान्य लोग निवास करते थे निचला नगर कहलाता था।
  • घरों का निर्माण सादगीपूर्ण ढंग से किया जाता था। उनमे एकरूपता थी। सामान्यतया मकान छोटे होते थे, जिनमे 4-5 कमरे होते थे।
  • प्रत्येक घर में एक आंगन. एक रसोईघर तथा एक स्नानागार होता था। अधिकांश घरों में कुँओं के अवशेष मिले हैं।
  • सिन्धु सभ्यता में कुछ सार्वजानिक स्थल भी मिले हैं, जैसे स्नानगृह अन्नागार आदि। मोहनजोदड़ों का सर्वधिक प्रसिद्द स्थल वहां का विशाल स्नानागार है।
  • कुछ बड़े आकार के भवन भी मिले हैं, जिनमे 30 कमरे बने होते थे। दो मंजिलें भवनों का निर्माण भी कहीं कहीं मिलता है।
  • स्वच्छता और सफाई का ध्यान रखते हुए घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की और न खुलकर पीछे की और खुलते थे।
  • धौलावीरा एक ऐसा नगर है, जिसमें नगर 3 भागों में विभाजित था।
  • मोहनजोदड़ो में विशाल अन्नागार मिला है, जो 45.71 मीटर लम्बा तथा 15.23 मीटर चौड़ा है। संभवतः यह सार्वजानिक स्थल था।
  • हड़प्पा में भी इस तरह के अन्नागार मिले हैं, पर वे आकार में छोटे हैं। इनकी लम्बाई 15.23 मीटर तथा चौड़ाई 6.9 मीटर है।

सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनितिक व्यवस्था  

  • सिन्धु सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। चूँकि हड़प्पावासी वाणिज्य-व्यापार की और अधिक आकर्षित थे इसलिए ऐसा मन जाता है की संभवतः हड़प्पा शासन व्यापारी वर्ग के हाथों में था।
  • व्हीलर ने सिन्धु प्रदेश के लोगों के शासन को मध्यमवर्गीय जनतंत्रात्मक कहा है और उसमे धर्म की भूमिका को प्रमुखता दी है।
  • हंटर के अनुसार मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।
  • मैके मानते हैं की मोहनजोदड़ो का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथ में था।
  • स्टुअर्ट पिग्गट ने यहाँ पुरोहित वर्ग का शासन माना है।

सिन्धु घाटी सभ्यता सामाजिक व्यवस्था  

मातृदेवी की पूजा तथा मुहरों पर अंकित चित्रों से स्पष्ट होता है कि सिन्धु सभ्यता कालीन समाज संभवतः मातृसत्तात्मक था।

समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार थी।
सिन्धु सभ्यता 4 वर्गों में विभाजित थी-
  1. योद्धा
  2. पुरोहित
  3. व्यापारी
  4. श्रमिक

  • श्रमिकों की स्थिति का आकलन करके व्हीलर ने दास प्रथा के अस्तित्व को स्वीकार किया है।
  • सिन्धु  सभ्यता के लोग सूती और ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
  • इस सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन का प्रयोग करते थे।
  • स्त्रियाँ सौन्दर्य पर काफी ध्यान देती थीं। काजल, लिपस्टिक, आइना, कंघी आदि के साक्ष्य हड़प्पा सभ्यता में मिले हैं।
  • आभूषणों का प्रयोग स्त्री और पुरुष दोनों ही करते थे। आभूषणों में चूड़ियाँ, कर्णफूल, हार, अंगूठी, मनके आदि का प्रयोग किया जाता था।
  • हड़प्पाई लागों के मनोरंजन के साधन चौपड़ तथा पासा खेलना, शिकार खेलना, मछली पकड़ना, पशु पक्षियों को लड़ाना आदि थे। धार्मिक उत्सव एवं समारोह समय-समय पर धूम-धाम से मनाये जाते थे।
  • अमीर लोग सोने चांदी, हाथी दांत के हार, कंगन अंगूठी कण के आभूषण प्रयोग करते थे। गरीब लोग सीपियों, हड्डियों, तांबे पत्थर आदि के बने आभूषणों का प्रयोग करते थे।
  • सिन्धु सभ्यता के लोग मृतकों का दाह संस्कार करते थे। मृतकों को जलाने और दफ़नाने दोनों प्रकार के अवशेष मिले हैं।

सिन्धु घाटी सभ्यता धार्मिक व्यवस्था  

  • सिन्धु सभ्यता के लोगों की धार्मिक मान्यता के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है, फिर भी मूर्तियों, मृदभांड आदि के अधर पर इनका अनुमान लगाया जाता है।
  • इस सभ्यता के लोगों का धार्मिक दृष्टिकोण का आधार लौकिक तथा व्यवहारिक था। मूर्तिपूजा का आरंभ संभवतः सिन्धु सभ्यता से ही माना जाता है।
  • सिन्धु सभ्यता के लोग मातृदेवी, पुरुष देवता (पशुपति), लिंग-योनि, पशु, जल आदि की पूजा करते थे।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर तीन मुख वाला पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है। उसके सर पर तीन सींग है। उसके बाएँ ओर एक गैंडा और भैंसा तथा दाएँ ओर एक हाथी, एक व्याघ्र और एक हिरन है। इसे पशुपति शिव की संज्ञा दी गई है।
  • हड़प्पा सभ्यता से स्वास्तिक और चक्र के भी साक्ष्य मिलते हैं। स्वास्तिक और चक्र सूर्य पूजा के प्रतीक थे।
  • कालीबंगा से हवन कुंड प्राप्त हुए हैं, जो धार्मिक विश्वास के द्योतक हैं। लोथा कालीबंगा एवं बनवाली से प्राप्त अग्नि वेदिकाओं से पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग अग्नि पूजा करते थे।
  • कुछ मृदभांडों पर नाग की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, जिससे अनुमान लगाया जाता है की नागपूजा की भी प्रचलन था।
  • हड़प्पा से प्राप्त एक मृणमूर्ति के गर्भ से एक पौधा निकलता दिखाया गया है, जो उर्वरता की देवी का प्रतीक है।

सिन्धु घाटी सभ्यता अर्थव्यवस्था   

  • सिन्धु सभ्यता की अर्थवयवस्था कृषि प्रधान थी, किन्तु पशुपालन और व्यापार भी प्रचलन में थे।
  • इस सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, चावल, कपास, व् सब्जियों का उत्पादन करते थे।
  • सर्वप्रथम कपास के उत्पादन का श्रेय सिन्धु सभ्यता के लोगों को ही प्राप्त है। यूनानियों ने इसे सिडोननाम दिया।
  • हड़प्पाई लोग संभवतः लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे। फसल काटने के लिए पत्थर के हसियों का प्रयोग किया जाता था।
  • पशुपालन कृषि का सहायक व्यवसाय था। लोग गाय, बैल, भैंस, हाथी, ऊंट, भेड़, बकरी और सूअर और कुत्ते को पालतू बनाते थे।
  • वाणिज्य-व्यापार बैलगाड़ी और नावों से संपन्न होता था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा लोथल सिन्धु सभ्यता के प्रमुख व्यापारिक नगर थे।
  • सिन्धु सभ्यता का व्यापार सिन्धु क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था, अपितु मिस्र, मेसोपोटामिया और मध्य एशियाई देशों से भी होता था।
  • सैन्धववासियों का व्यापारिक सम्बन्ध ईरान, अफगानिस्तान, ओमान, सीरिया, बहरीन आदि देशों से भी था। व्यापार मुख्यतः कीमती पत्थरों, धातुओं, सीपियों आदि तक सीमित था।
  • सैन्धव सभ्यता के प्रमुख बंदरगाह- लोथल, रंगपुर सुत्कांगेडोर, सुत्काकोह, प्रभासपाटन आदि थे।

हड़प्पा सभ्यता में आयात होने वाली वस्तुएं

  • टिन- अफगानिस्तान और ईरान से
  • चांदी- अफगानिस्तान और ईरान से
  • सीसा- अफगानिस्तान, राजस्थान और ईरान से
  • सेल खड़ी- गुजरात, राजस्थान तथा बलूचिस्तान से
  • सोना- ईरान से
  • तांबा-बलूचिस्तान और राजस्थान के खेतड़ी से
  • लाजवर्द मणि - मेसोपोटामिया 

सैन्धव कला 

  • सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों में कला के प्रति स्पष्ट अभिरुचि दिखायी देती है।
  • हड़प्पा सभ्यता की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ हैं- उनकी मुहरें, अब तक लगभग 2000 मुहरें प्राप्त हुई हैं। इनमे से अधिकांश मुहरें, लगभग 500, मोहनजोदड़ो से मिली हैं। मुहरों के निर्माण में सेलखड़ी का प्रयोग किया गया है।
  • अधिकांश मुहरों पर लघु लेखों के साथ साथएक सिंगी सांड, भैंस, बाघ, बकरी और हाथी की आकृतियाँ खोदी गयी हैं। सैन्धव मुहरे बेलनाकार, आयताकार एवं वृत्ताकार हैं। वर्गाकार मुद्राएं सर्वाधिक प्रचलित थीं।
  • इस काल में बने मृदभांड भी कला की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। मृदभांडों पर आम तौर से वृत्त या वृक्ष की आकृतियाँ भी दिखाई देती हैं। ये मृदभांड चिकने और चमकीले होते थे। मृदभांडों पर लाल एवं काले रंग का प्रयोग किया गया है।
  • सिन्धु सभ्यता में भारी संख्या में आग में पकी लघु मुर्तिया मिली हैं, जिन्हें टेराकोटा फिगरिनकहा जाता है। इनका प्रयोग या तो खिलौनों के रूप में या तो पूज्य प्रतिमाओं के रूप में होता था।
  • इस काल का शिल्प काफी विकसित था। तांबे के साथ टिन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था।

सैन्धव लिपि 

  • हड़प्पा की लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। सिन्धु सभ्यता में लगभग 64 मूल चिन्ह एवं 250 से 400 तक आकार है, जो सेलखड़ी से बनी आयताकार मुहरों तथा तांबे की गुरिकाओं पर मिलते हैं।
  • हड़प्पा भाव चित्रात्मक है। उनकी लिखावट क्रमशः दाईं और से बाईं और की जाती थी।
  • बिहार के कुछ विद्वानों अरुण पाठक एवं एन. के. वर्मा ने सिन्धु सभ्यता की लिपियों का संथालों की लिपि से सम्बन्ध स्थापित किया है।उन्होंने संथाल आधिवासियों से अलग-अलग ध्वन्यात्मक संकेतों वाली 216 मुहरें प्राप्त की, जिनके संकेत चिन्ह सिन्धु घाटी में मिली मुहरों से काफी मेल खाते हैं।
  • सिन्धु सभ्यता की लिपि मूल रूप से भारतीय है, इसका पश्चिम एशिया आदि की सभ्यताओं की लिपियों से कोई सम्बन्ध नहीं है।

स्मरणीय तथ्य 
  • मोहनजोदड़ो का अर्थ है- मृतकों का टीला
  • कालीबंगा का अर्थ है- काले रंग की चूड़ियाँ
  • लोथल सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह  था।
  • बनवाली से अच्छे किस्म के जौ, सरसों, और टिल मिले हैं
  • अग्निकुंड लोथल और कालीबंगा से प्राप्त हुए हैं।
  • कालीबंगा और बनवली में दो सांस्कृतिक धाराओं प्राक्-हड़प्पा एवं हड़प्पा-कालीन संस्कृति के दर्शन होते हैं।
  • हड़प्पा काल में व्यापार का माध्यम वास्तु विनिमय था।
  • कालीबंगा के मकान कच्ची इंटों से बने थे।
  • चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से प्राप्त हुए हैं।
  • हड़प्पा मुहरों पर सर्वाधिक एक श्रृंगी पशु का अंकन मिलता है।
  • घोड़े की जानकारी मोहनजोदड़ो, लोथल तथा सुरकोटदा से प्राप्त हुई है।
  • स्वास्तिक चिन्ह हड़प्पा सभ्यता की देन है।
  • चन्हूदड़ो एकमात्र पुरास्थल है जहाँ से वक्राकर ईंटें मिली हैं।
  • हड़प्पा सभ्यता का परवर्ती काल रंगपुर तथा राजदी में परिलक्षित होता है।
  • हड़प्पा में अन्नागार गढ़ी से बाहर व मोहनजोदड़ो में गढ़ी के अन्दर मिले हैं।
  • R-37 कब्रिस्तान हड़प्पा से प्राप्त हुआ है। 

सिन्धु सभ्यता से सम्बंधित पुरास्थल

  • कालीबंगा-दुर्गीकृत निचला शहर, भवन निर्माण में कच्ची इंटों का प्रयोग
  • लोथल-बंदरगाह
  • मोहनजोदड़ो- अन्नागार
  • धौलावीरा-साइन बोर्ड, उत्तम जलप्रबंध, नगर तीन भागों में विभाजित
  • रोपड़-नवपाषाण, ताम्रपाषाण एवं सिन्धु सभ्यता तीनो के अवशेष, मानव के साथ दफनाया कुत्ता
  • मोहनजोदड़ो-कालीबंगा व हड़प्पा के समान नगर योजना
  • आमरी-गैंडे का साक्ष्य 

सिन्धु सभ्यता से सम्बंधित महत्वपूर्ण वस्तुएं

महत्वपूर्ण वस्तुएं   प्राप्ति स्थल
तांबे का पैमाना     हड़प्पा
सबसे बड़ी ईंट मोहनजोदड़ो
केश प्रसाधन (कंघी) हड़प्पा
वक्राकार ईंटें  चन्हूदड़ो
जुटे खेत के साक्ष्य  कालीबंगा
मक्का बनाने का कारखाना चन्हूदड़ो, लोथल
फारस की मुद्रा     लोथल
बिल्ली के पैरों के अंकन वाली ईंटे चन्हूदड़ो
युगल शवाधन     लोथल
मिटटी का हल     बनवाली
चालाक लोमड़ी के अंकन वाली मुहर     लोथल
घोड़े की अस्थियां   सुरकोटदा
हाथी दांत का पैमाना लोथल
आटा पिसने की चक्की    लोथल
ममी के प्रमाण     लोथल
चावल के साक्ष्य    लोथल, रंगपुर
सीप से बना पैमाना मोहनजोदड़ों
कांसे से बनी नर्तकी की प्रतिमा   मोहनजोदड़ों

सिन्धु सभ्यता के प्रमुख स्थल व खोजकर्ता

स्थल  अवस्थिति   खोजकर्ता    वर्ष   नदी / सागर तट
हड़प्पा मांटगोमरी (पाकिस्तान)    दयाराम साहनी     1921   रावी
मोहनजोदड़ो  लरकाना (पाकिस्तान)     राखालदास बनर्जी   1922   सिन्धु
रोपड़  पंजाब यज्ञदत्त शर्मा 1953   सतलज
लोथल अहमदाबाद (गुजरात) रंगानाथ नाथ राव   1954   भोगवा नदी
कालीबंगा    गंगानगर (राजस्थान)     ए. घोष     1953   घग्घर
चन्हूदड़ो     सिंध (पाकिस्तान)   एन. जी. मजूमदार  1934   सिन्धु
सुत्कांगेडोर   बलूचिस्तान (पाकिस्तान)   आरेल स्टाइन 1927   दाश्क
कोटदीजी    सिंध (पाकिस्तान)   फज़ल अहमद खां   1955   सिन्धु
अलमगीरपुर  मेरठ  यज्ञदत्त शर्मा 1958   हिंडन
सुरकोटदा    कच्छ (गुजरात)    जगपति जोशी 1967  
रंगपुर कठियावाड़ (गुजरात) माधोस्वरूप वत्स    1953-54         मादर
बालाकोट    पाकिस्तान   डेल्स  1979   अरब सागर
सोत्काकोह   पाकिस्तान                       अरब सागर
बनवाली     हिसार (हरियाणा)   आर. एस. बिष्ट    1973-74        
धौलावीरा    कच्छ (गुजरात)    जे.पी. जोशी  1967  
पांडा  जम्मू-कश्मीर                     चिनाब
दैमाबाद     महाराष्ट्र     आर. एस. विष्ट    1990`प्रवरा  
देसलपुर     गुजरात     के. वी. सुन्दराजन  1964  
भगवानपुरा   हरियाणा    जे.पी. जोशी            सरस्वती नदी

सिन्धु सभ्यता का पतन 

सिन्धु सभ्यता के पतन के बारे में मतभेद है। विभिन्न विद्वानों ने इसके पतन के कारण इस प्रकार दिए हैं।

विद्वान     पतन के कारण
जॉन मार्शल  प्रशासनिक शिथिलता
गार्डन चाइल्ड व व्हीलर    वाह्य एवं आर्यों का आक्रमण
जहन मार्शल, मैके एवं एस.आर. राव     बाढ़
आरेल स्टाइन जलवायु परिवर्तन
एम. आर. साहनी एवं आर. एल. रेईक्स  जल प्लावन
के.यू. आर. केनेडी  प्राकृतिक आपदा
फेयर सर्विस  पारिस्थिकी असंतुलन

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