ज्वालामुखी | Jwalamukhi | Jwalamukhi Gk in Hindi

Jwalamukhi Gk in Hindi

ज्वालामुखी Jwalamukhi

भूपटल से निकलने वाले लावे के मुख पर एक भू-आकृति को ज्वालामुखी कहते हैं। मैग्मा जो पृथ्वी के अंदर उत्पन्न होता है उसका उदगार एक ज्वालामुखी का रूप धार कर लेता है। भू-आकृति विज्ञान के विशेषज्ञ प्रो. होम महोदय के अनुसार ज्वालामुखी एकनालिका अथवा बिदर को कहते हैं जिसके द्वारा पृथ्वी के अंदर से लावा भूपटल पर आता है। सामान्यतः ज्वालामुखी के मुख पर एक शंकवाकार की भू-आकृति बन जाती है, परंतु बहतु से ज्वालामुखियों में लावा पानी की भांति उबलता रहता है।

ज्वालामुखी की परिभाषा

ज्वालामुखी से आशय पृथ्वी के धरातल में स्थित उस छिद्र से है, जिससे मैग्मा नामक गर्म तरल, गैस व चट्टानों के टूटे टुकड़े आदि निकलते हैं। धरातल में स्थित छेद का स्वरूप दरार जैसा भी हो सकता है। इसके मुख को क्रेटर , तथा आकार बढ़ने पर इसे काल्डेरा कहते हैं।

ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा वास्तव में पिघली हुई चट्टानें होती है। किसी ज्वालामुखी से लावा के अतिरिक्त राख, भाप, वाष्प, चट्टानों के टुकड़े झाँवे तथा धूल इत्यादि बाहर निकलते हैं। वर्तमान समय में लगभग 1300 ज्वालामुखी है, जिनमें से लगभग 600 ज्वालामुखी सक्रिय हैं।

ज्वालामुखी उदगार के कारण

ज्वालामुखी उदगार का संबंध  प्लेट टेक्टोनिक एवं प्लेटों के विस्थापन से है। ज्वालामुखी उदगार के कारण निम्न प्रकार हैं-

1. भू-पटल की गहराई में जाते हुए प्रत्येक 32 मीटर के पश्चात तापमान 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती रहती है। इस तापमान वृद्धि का प्रमुख कारण विघटनाभिक का विघटन होना है। परिणामस्वरूप एक विशेष गहराई पर तापमान में अधिक वृद्धि के कारण पिघलकर मैग्मा का रूप धारण कर लेता है।
2. पृथ्वी की गहराई में जाते हुए शैलों का भार बढ़ता जाता है, इसके कारण ग्लांक बिंदु कम होता जाता है, जिससे चट्टाने मैग्मा में परिवर्तित हो जाती हैं।
3. भू-पटल की परतों से जल रिसाव नीचे की परतों की ओर होता रहता है, गहराई में तापमान अधिक होने के कारण जल वाष्प में बदल जाता है, यह जलवाष्प ज्वालामुखी के साथ बाहर निकलती है।
4. मैग्मा अथवा पिघली हुई चट्टानें जब भारी बल के साथ विदर के द्वारा ऊपर आता है तो बहुत से जलवाष्प, धुल, गैस और चट्टानों के टुकड़ों को बाहर फेंकता है।
5. भू-पटल की बड़ी तथा छोटी प्लेटों का स्थान परिवर्तन करना तथा उनका खिसकना भी मैग्मा उत्पन्न करने में सहायक होता है और मैग्मा उद्गार से ज्वालामुखी आते हैं।

ज्वालामुखी उदगारों के प्रकार Causes of Volcanic Eruptions

जवालामुखियों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है, परंतु लेकरायवस महोदय का 1908 का ज्वालामुखी वर्गीकरण अधिक स्वीकार्य है। लेकरायस महोदय के अनुसार उदगार के आधार पर ज्वालामुख्यिों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- हवाई टाप, स्ट्रम्ब बोलिलयन, वलकेनियन तथा पीलियन।

हवाइन उदगार Hawaiian Type

  • इस प्रकार के ज्वालामुखी उदगार में लावा पानी की तरह तरल होता है जो उबलकर तीव्रता के साथ चारों ओर फैलता है। इस प्रकार के ज्वालामुखी उदगार में लावे के साथ गैस एवं जलवाष्प भी निकलती है। इसमें कोई विस्फोटक प्रक्रिया नहीं होती है।
स्ट्रम्ब बोलिलयन अथवा शिखर मुख उदगार Strambolian or Summit Crater eurption
  • इस प्रकार के ज्वालामुखी का लावा, हवाई तुल्य प्रकार के ज्वालामुखी की तुलना में गाढ़ा होता है। उद्गार के समय प्रायः विस्फोट भी होता है। यह लावे के साथ-साथ चट्टानों के टुकड़े इत्यादि भी बाहर फेंकता है। इस प्रकार के ज्वालामुखी का नामकरण उत्तरी सिसली के निकट स्टंªबोली द्वीप पर स्थित ज्वालामुखी के आधार पर रखा गया है।
वलकेनियन उदगार Vulcanian Eruption
  • इस प्रकार के उदगार का लावा तीव्रता से गाढ़ा एवं ठोस हो जाता है। इसकी शलीलता (गाढ़ापन) अधिक होती है। इससे निरंतर विस्फोट होते रहते हैं। लावे के साथ-साथ ठोस पदार्थ, चट्टानों के टुकड़े, राख, जलवाष्प भी बाहर आते हैं। इस किस्म के ज्वालामुखियों की आकृति शंकु आकार की होती है।
पीलियन उदगार Pelean Eruption
  • पीलियन उदगार में लावा अत्यंत गाढ़ा होता है। इसमें प्रचंड विस्फोट होते हैं। इस प्रकार के उद्गार की एक विशेषता नुए आर्दाते की उत्पत्ति एवं रचना होती है। इनमें काले रंग का धुआँ, गाढ़े बादलों का रूप धारण कर लेता है। जिसके निचले भाग अथवा क्रेटर के मुख से आग की लपटें उठती हुई नजर आती हैं। इन आग की लपटों को फ्रांसीसी भाषा में नुए-अर्दाते कहते हैं। यदि ज्वालामुखी  के विदर में लावा गाढ़ेपन के कारण ठोस हो जाये तो अधिक जोर का धमाका होता है। इस प्रकार के ज्वालामुखी प्रायः शंकु आकार के होते हैं। कभी-कभी ज्वालामुखी के शंकु एक संपूरक ज्वालामुखी को भी जन्म देता है। इस प्रकार के ज्वालामुखी प्रायः कैम्ब्रियन सागर के द्वीपों पर फटते हैं।

उदगार की अवधि के आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण Classification of Volcanoes on the basis of period of eruption

अवधि के आधार पर ज्वालामुखियों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

सक्रिय ज्वालामुखी Active Volcanoes

जिन ज्वालामुखियों से लावा, गैस, राख इत्यादि लगातार निकलते हैं उनको सक्रिय ज्वालामुखी कहते हैं। वर्तमान समय में विश्व में छः सौ से अधिक ज्वालामुखी सक्रिय हैं। विश्व के अधिकतर सक्रिय ज्वालामुखी प्रशांत महासागर के अग्नि वृत में हैं। भारत वर्ष में अंडमान द्वीप समूह में स्थित बैरन द्वीप एक सक्रिय ज्वालामुखी है।

प्रसुप्त/डार्मेंट ज्वालामुखी Dormant Volcanoes

ऐसा ज्वालामुखी जो लुप्त न हुआ हो, परंतु सोया हुआ हो और उसमें से कभी भी लावा, गैस इत्यादि निकलने शुरू हो जाये प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाता है। इटली की वेसुवियस का प्रसुप्त ज्वालामुखी है इस ज्वालामुखी का पहला उद्गार 79 ए.डी. में हुआ था। यह ज्वालामुखी लगभग 1550 वर्षों तक सुप्त रहा, जिसके पश्चात् 1631 ई. में फिर से सक्रिय हो गया, इसमें से लावा, गैस, राख इत्यादि का उदगार होने लगा। उसके पश्चात यह ज्वालामुखी 1803,1872,1906,1927,1928,1929 में सकिे्रय हो उठा। अफ्रीका महाद्वीप में तंजानिया का किलिमतंजारो एक प्रसुप्त ज्वालामुखी है। भारत के अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में नारकोंडम ज्वालामुखी भी प्रसुप्त ज्वालामुखी का उदाहरण है।

लुप्त अथवा शांत ज्वालामुखी Extinct Volcanoes

ऐसे ज्वालामुखी जो भूगर्भीय इतिहास में सक्रिय रहे हों परंतु मानव इतिहास में सक्रिय न रहे हों उनको लुप्त ज्वालामुखी में सम्मिलत किया जाता है। ऐेसे ज्वालामुखियों के मुख/क्रेटर में पानी भर जाता है और वे एक झाील का रूप धारण कर लेती हैं। स्काटलैंड की राजधानी, ऐडिंबर्ग की आर्थर सीट ऐंडीज पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊँची शिखर एकांकगुआ तथा इरान का देमावंद तथा कोह-सुलेमान लुप्त ज्वालामुखियों के उदाहरण है।

ज्वालामुखियों का विश्व वितरण Distribution of Volcanoes in the World

अधिकतर ज्वालामुख्यिों के उद्गार भूकंपीय क्षेत्रों में आते हैं और इनका वितरण विशेष रूप से भूपटल की प्लेटों के छोर पर पाया जाता है।

1. अभिसारी प्लेट सीमाएँ Convergent plate margins

अभिसारी प्लेटों की अधिकतर सीमाएँ प्रशांत महासागर में है। इन सीमाओं को अग्निवृत के नाम से जाना जाता है। इस अग्निवृत्त का विस्तार दक्षिणी अमेरिका के ऐंडीस पर्वत से लेकर, मध्य अमेरिका, पं. संयुक्त राज्य अमेरिका का पर्वतीय क्षेत्र, एल्यूशियन द्वीप समूह, कमचटका, क्यूराइल द्वीप समुह, जापान, फिलीपाइन, सेल्वासा, यूगिनी, सोलोमन द्वीप समूह, यूकेलिडोनिया तथा न्यूजीलैंड तक है। विश्व के अधिकतर 70 प्रतिशत ज्वालामुखियों का उद्गार उपरोक्त क्षेत्रों में होता है तथा सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी इन्हीं क्षेत्रों में स्थित है।

2- अपसारी प्लेट सीमाएँ Divergent plate Boundaries

महासागरों में पाये जाने वाले कटकों को प्लेटों की अपसारी सीमाएँ कहते हैं। इन अपसारी प्लेटों पर नया लावे का उदगार होता रहता है, इसलिए कटकों पर ज्वालामुखियों की पेटियाँ फैली हुई हैं। आइसलैंड देश  एक कटक पर स्थित है, इसलिए इस देश में ज्वालामुखियों की बारंबारता अधिक पाई जाती है। अंडमान द्वीप समूह में स्थित बैरन-ज्वालामुखी भी एक कटक पर स्थित है। पूर्वी अफ्रीका  की रिफ्ट-बैली में भी बहुत से ज्वालामुखी अपसारी प्लेट सीमाओं पर पाये जाते हैं। किलिमंजारों (तंजानिया) ज्वालामुखी भी अपसारी सीमा पर स्थित है।

3- हाॅट-स्पाॅट Hot Spot

भू-पटल के अंदरूनी भाग में बहुत से स्थान गर्म लावे के केन्द्र हैं। ज्वालामुख्यिों के विशेषज्ञों के अनुसार इस समय विश्व में सौ से अधिक हाॅट-स्पाॅट हैं। इन हाॅट-स्पाॅटों पर लावा, ऊष्मा एवं ऊर्जा एकत्रित होती रहती है और लावे की ऊर्जा अत्याधिक हो जाती है तो ज्वालामुखी उदगार हो जाता है।

विश्व के प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी

सक्रिय ज्वालामुखी विशेष
पोपोकाटेपटी
अवस्थिति-मैक्सिकों (अल्टीपलोनी)
देश- मैक्सिको
अंतिम उदगार-1920

उंचाई मीटर- 5451
अना
अवस्थिति-कराकेटवा
देश-इंडोनेशिया
अंतिम उदगार-1929

उंचाई मीटर- 155
माउंट के मरून
अवस्थिति-मोनार्क
देश-केमरून
अंतिम उदगार-1959

उंचाई मीटर-278
गुआल्लातिरी
अवस्थिति-एंडीज
देश-चिली
अंतिम उदगार-1960

उंचाई मीटर-6060
फूगो
अवस्थिति-सीरा मेदरे
देश-ग्वाटेमाला
अंतिम उदगार-1962

उंचाई मीटर-3836
संर्टसे
अवस्थिति- द. पूर्वी आइसलैंड
देश-आइसलैंड
अंतिम उदगार-1963

उंचाई मीटर-173
अंगग
अवस्थिति-बाली द्वीप
देश- इंडोनेशिया
अंतिम उदगार-1664

उंचाई मीटर- 3142
टुपनगाताती
अवस्थिति- एंडीज
देश- चिली
अंतिम उदगार-1964

उंचाई मीटर- 5640
लस्कर
अवस्थिति-एंडीज
देश- चिली
अंतिम उदगार-1968

उंचाई मीटर-5641
कलयुचीवस्काया
अवस्थिति-खेरबेट
देश- सोवियत संघ
अंतिम उदगार-1974

उंचाई मीटर-4850
फ्रीबस
अवस्थिति-रोस द्वीप
देश- अंटार्कटिका
अंतिम उदगार-1975

उंचाई मीटर-3795
सांगय
अवस्थिति-एंडीज
देश- कोलंबिया
अंतिम उदगार-1976

उंचाई मीटर- 5230
सेमरू
अवस्थिति-जावा
देश- इंडोनेशिया
अंतिम उदगार-1976

उंचाई मीटर-3776
नीरागोंगो
अवस्थिति-विरूंगा
देश- जायरे
अंतिम उदगार-1977

उंचाई मीटर-3470
पुरासे
अवस्थिति-एंडीज
देश- कोलंबिया
अंतिम उदगार-1977

उंचाई मीटर-4590
मौना-लोआ
अवस्थिति-हवाई
देश- यू.एस.ए.
अंतिम उदगार-1978

उंचाई मीटर-4170
माउंट एटना
अवस्थिति-सिसली
देश- इटली
अंतिम उदगार-1979

उंचाई मीटर-3308
आजोस डेल सलादो
अवस्थिति-एंडीज
देश- अर्जेंटीना चिली सीमा
अंतिम उदगार- 1981

उंचाई मीटर-6885
वाडो डल रूइज
अवस्थिति- एंडीज
देश- कोलंबिया
अंतिम उदगार-1985

उंचाई मीटर-5400
माउंट अंजेन
अवस्थिति-होंशु
देश- जापान
अंतिम उदगार-1991

उंचाई मीटर-1454
माउंट योन
अवस्थिति-लूजोन
देश- फिलिपाइंस
अंतिम उदगार-1991

उंचाई मीटर-1120
माउंट फिया फियोल
अवस्थिति-आइसलैंड
देश- आइसलैंड
अंतिम उदगार-2010

उंचाई मीटर-1475


ज्वालामुखियों का समाज पर प्रभाव Volcanoes and Society

ज्वालामुखी उदगार एक चमत्कारी भौगोलक घटना मानी जाती है। ज्वालामुखियों मे निकट रहने वाले लोगों के लिये सैकड़ों वर्षों तक ये प्रकृति का रहस्यमय चमत्कार माना जाता रहा है। परंतु ज्वालामुखी उदगार एक रहस्मय घटना नहीं है, ये पृथ्वी के इतिहास में इसकी बारंबारता बहुत पाई गई है और भविष्य में भी इसका उदगार होता हरेगा।
सामान्यतः ज्वालामुख्यिों से मानव समाज को जान-माल की भारी हानि होती रही तथा  पारिस्थितिकी तंत्र पर भी इनका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता रहा है।
ज्वालामुखियों की उत्पत्ति अंतरजात बलों के कारण होती है। यंू तो अंतरजात बलों के बारे में भविष्यवाणी करना कठिन कार्य है, फिर भी कुछ हद तक ज्वालामुखी उदगार के बारे  में भविष्यवाणी की जा सकती है। वर्तमान समय में प्रसुप्त ज्वालामुखियों के बारे में निरंतर जानकारी प्राप्त की जाती है और माॅनिटर किया जाता है। वास्तव में ज्वालामुखी उदगार के पहले कुछ लक्षण नजर आते है जो इस प्रकार हैं।
क- भूपटल पर कंपन की बारंबारता बढ़ जाती है।
ख- ज्वालामुखी के मुख के्रेटर की आकृति विकृत हो जाती है।
ग- क्रेटर झील के पानी के तापमान में निरंतर वृद्धि हो जाती है।
घ- ज्वालामुखी के क्रेटर से गैस और धुवाँ निकलने लगता है।
ड- पशु-पक्षियों तथा रेंगने वाले जैविकों में बैचिनी हो जाती है तथा सरीसृप जमीन से बाहर आकर रेंगने लगते हैं।

ज्वालामुखी आपदा प्रबंधन

यदि प्रबंधन एवं प्रशासन भली-भांति किया जाये तो ज्वालामुखी आपदा से होने वाली हानि को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। बहुत से ज्वालामुखियों से बहुत तरल लावा निकलता है और तेजी से ढलानों पर बहता है। ऐसे लावे से प्राकृतिक वनस्पति, फसलों, जीव-जंतुओ, मकानों, इमारतों, पशु-पक्षियों तथा मानव समाज को भारी हानि होती है। लावे की लपटों में आकर सब नष्ट हो जाते हैं। यदि जनसंख्या को समय के पहले हटा लिया जाये तो बहुत से लोगों की जान को बचाया जा सकता हैं यदि लावा मंद गति से बह रहा हो तो उस पर भारी मात्रा में छिड़काव करने से लावे को ठंडा किया जा सकता है। कुछ रासायनिक तत्वों से भी लावे को ठंडा करने और उसे बहाव को कम करने में सहायता मिलती है। इनके अतिरिक्त प्रसुप्त ज्वालामुखियों के आस-पास बस्ती बसाने और रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

ज्वालामुखी उदगार से होने वाले लाभ

  • ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे के ठंडे होने के पश्चात जो मृदा उत्पन्न होती है वह बहुत उपजाऊ होती है।
  • सोना, चांदी, तांबा, लोहा, मैंगनीज जैसे धातु तथा बहुमूल्य पत्थरों की उत्पत्ति ज्वालामुखी लावे की विशेष भूमिका होती है।
  • भूगर्भ उष्मा से ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है तािा गंधक के चश्में मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होते हैं।



प्रमुख ज्वालामुखी एवं मृत्यु संख्या


ज्वालामुखी
विशेष

माउंट पिली, मीटिनिक द्वीप (वेस्टइंडीज)

वर्ष- 1902
मृत्यु- 28000

ला सुफरिरिर, सेंट विंसेट

वर्ष- 1902
मृत्यु- 1665

केलटा, जापान

वर्ष- 1919
मृत्यु- 5500

माउंट लेमिंग्टन, पापुआ न्यूगिनी

वर्ष- 1951
मृत्यु- 3000

माउंट अगंग, बाली इंडोनेशिया

वर्ष- 1963
मृत्यु- 1500

माउंट सेंट हेलन (वाशिंगटन, संयुक्त राज्य अमेरिका)
कोलंबया

वर्ष- 1985
मृत्यु- 23000

माउंट, फिलिपाइन

वर्ष- 1991
मृत्यु- 1500

होंशू जापान

वर्ष- 1991
मृत्यु- 255

माउंट फियाओल आइसलैंड

वर्ष- 2010
मृत्यु- 150

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