Bharat Sarkar Adhiniyam 1919 | भारत सरकार अधिनियम 1919

भारत सरकार अधिनियम 1919

भारत सरकार अधिनियम 1919 (Bharat Sarkar Adhiniyam 1919)

ब्रिटिश संसद ने 1919 में भारत के औपनिवेशिक प्रशासन के लिये नया विधान बनाया जिसे भारत सरकार अधिनियम, 1919  के नाम से लागू किया गया। इस अधिनियम को मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा गया क्योंकि इस अधिनियम के पारित होने के समय मांटेग्यू भारत सचिव तथा चेम्सफोर्ड वायसराय थे। सरकार का दावा था कि उस अधिनियम की विशेषता उत्तरदायी शासन की प्रगतिहै।

भारत सरकार अधिनियम 1919  की प्रमुख विशेषताएँ

1- द्वैध शासन


शासन से संबंधित विषयों को दो भागों में बांट दिया गया।

1- केंद्रीय

2- प्रांतीय

प्रांतीय विषयों को दो भागों में बांटा जाने के कारण इस व्यवस्था को द्वैध शासन कहा गया। प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभाजित किया गया

1-आरक्षित

2-हस्तांतरित

आरक्षित विषयों में 28 विषयों का समावेश किया गया जिनका प्रशासन गर्वनर अपनी परिषद के माध्यम से करेगा। जो केवल उसी के प्रति उत्तरदायी थी। हस्तांतरित विषयों में 22 विषयों का समावेश किया गया जिनका प्रशासन भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था।

द्वैध शासन व्यवस्था इस अधिनियम का सर्वाधिक बुरा पक्ष साबित हुआ। क्योंकि महत्वपूर्ण विषय बिना उत्तरदायी के गवर्नर को और उसके माध्यम से गर्वनर को सौंप दिए गए। भारतीय विधान परिषद के स्थान पर दो सदनीय व्यवस्था (लोकसभा राज्यसभा) का गठन किया गया।

2- उत्तरदायी सरकार की शुरुआत

इसका उद्देश्य स्थानीय सरकारों एवं विधानसभाओं को केंद्रीय नियंत्रण से मुक्त करना तथा प्रांतों में एक उत्तरदायी सरकार का मार्ग प्रशस्त करना था।

3- द्विसदनात्मक व्यवस्था एवं प्रत्यक्ष चुनाव

केंद्रीय विधान सभा और राज्य परिषद के साथ एक द्विसदनीय व्यवस्था प्रारंभ की गई। इस अधिनियम के द्वारा पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव की भी शुरुआत की गयी।

4- सीमित मताधिकार

इसके तहत संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित लोगों को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया।

5- भारतीयों का प्रतिनिधित्व

यह निर्धारित किया गया कि वायसराय की कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों में से तीन (कमांडर-इन-चीफ के अतिरिक्त) भारतीय हों।

6- सांप्रदायिक निर्वाचन मंडल का गठन

इस अधिनियम में सांप्रदायिक आधार पर सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल भारतीयों और यूरोपियों के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया गया। इस अधिनियम ने शिक्षा, सम्पत्ति एवं कर के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया।लंदन में भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सृजन किया गया।

7-इसके तहत पहली बार प्रांतीय बजट को केंद्रीय बजट से पृथक किया गया तथा प्रांतीय विधानसभाओं को अपने बजट को अधिनियमित करने के लिए अधिकृत किया गया।

8- भारत के राज्य सचिव के वेतन का भुगतान ब्रिटिश राजकोष से किए जाने का प्रावधान किया गया।

9- इस अधिनियम में एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया अतः 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोकसेवा आयोग का गठन किया गया।

10- इस अधिनियम में एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।
11-इस अधिनियम में महिलाओं को मताधिकार दिया गया गांधी जी ने इस उत्तरदायी शासन की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय का स्वागत किया।

भारत सरकार अधिनियम 1919 सीमाएं

द्वैधशासन को सुचारु रूप से परिचालित करना अत्यधिक जटिल था और इसके अतिरिक्त गवर्नर-जनरल एवं गवर्नरों को क्रमशः केंद्र और प्रांतों में विधायिका को बाधित करने हेतु व्यापक शक्तियां प्राप्त थीं।

मतदान के अधिकार सीमित थे तथा आम आदमी तक इसका विस्तार नहीं था।

केंद्रीय विधायिका की वित्तीय शक्तियां भी अत्यधिक सीमित थीं।

इस अधिनियम की अनेक सीमाएँ थीं और यह भारतीयों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सका।

भारत सरकार अधिनियम 1919 और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

भारत सरकार अधिनियम 1919  को निम्नलिखित कारणों से इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर माना जा सकता है:

पुरस्कार के रूप में भारत सरकार अधिनियम, 1919’ तथा दंड के रूप में रौलट एक्टको लागू करने के साथ ब्रिटिश सरकार ने पुरस्कार एवं दंड की नीति को जारी रखा।

रौलट एक्ट के विरोध में गांधीजी द्वारा रौलट सत्याग्रह का नेतृत्व किया गया। द्वैध शासन की दोषपूर्ण योजना भारतीयों की स्वशासन के लिए बढ़ती मांग को पूरा करने में विफल रही। इस अधिनियम और साथ ही जलियांवाला बाग हत्याकांड से उत्पन्न असंतोष एवं इनकी अनुवर्ती हंटर समिति की रिपोर्ट ने 1921 में ऐतिहासिक असहयोग आंदोलन आरम्भ किए जाने का मार्ग प्रशस्त किया।

सांप्रदायिक पंचाट (1932), भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत सिखों, भारतीय ईसाइयों, आंग्ल-भारतीयों और यूरोपीय लोगों को प्रदत्त सांप्रदायिक निर्वाचक मंडल का एक अन्य विस्तार था।

भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत संवैधानिक प्रगति की समीक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की नियुक्ति की, जिसने भविष्य के सुधारों हेतु मार्ग प्रशस्त किया। यह अधिनियम भारत सरकार अधिनियम, 1935 और अंततः संविधान का आधार बना। उत्तरदायी सरकार, स्वशासन और संघीय ढांचे के महत्त्वपूर्ण सिद्धांत इन सुधारों के माध्यम से विकसित हुए।

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