Properties of living beings in hindi जीवधारियों के गुण

जीवधारियों के गुण

जीवधारियों के गुण  Properties of living beings 


  • यदि हम किसी जीवधारी का रासायनिक विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यह कार्बन ,हाइड्रोजन, ऑक्सीजन व नाइट्रोजन, आदि उन्हीं तत्वों से बना होता है जो निर्जीव जगत में पाए जाते हैं। परंतु केवल इन तत्वों के मिश्रण से ही कोई जीवधारी नहीं बन जाता है।
  • वास्तव में सभी सजीवों में कुछ ऐसे विशिष्ट गुण होते हैं जो निर्जीवों में नहीं पाए जाते। किसी भी वस्तु को, जिसमें कुछ विशिष्ठ जैविक क्रियाएं जैसे वृद्धि -प्रचलन, शवसन ,पोषण ,प्रजनन आदि हो रही हों, सजीव कहते हैं। इन जैविक  क्रियाओं के आधार पर ही जीवों को निर्जीवों से अलग कर पाना संभव होता है।

सजीवों में निम्नलिखित लक्षण होते हैं: The following symptoms in living beings


1. कोशिकीय संचरण (cellular organization): 
जिस प्रकार मकान ईंटों से बना होता है, उसी प्रकार प्रत्येक जीव एक अथवा अनेक छोटी-छोटी कोशिकाओं से बना होता है। कोशिकाएं शरीर की रचनात्मक व कार्यात्मक इकाई हैं।

2. जीवद्रव्य (protoplasm):
प्रत्येक कोशिका में जैव पदार्थ होता है जिसे जीवद्रव्य(protoplasm)कहते हैं। यह सभी जीवधारियों में पाया जाने वाला वास्तविक जीवित पदार्थ है। क्योंकि यह सभी जीवों की भौतिक आधारशिला है। इसे जैविक क्रियाओं का केंद्र कहते हैं। यह एक तरल गाढ़ा, रंगहीन ,लसलसा व जलयुक्त पदार्थ है। इसकी रचना कार्बोहाइड्रेट ,वसा , प्रोटीन अकार्बनिक लवणों द्वारा होती है। हक्सले (Huxley)के अनुसार, "जीवद्रव्य जीवन का भौतिक आधार है।

3. आकृति एवं आकार (Shape and Size):
सभी जीवों की अलग-अलग विशिष्ट आकृति एवं आकार होते हैं। उन्हीं के आधार पर इनकी पहचान की जाती है। अर्थात विविधता जीव धारियों का शाशवत गुण है।

4. उपापचय (Metabolism):
सजीवों की कोशिकाओं में होने वाले संपूर्ण जैव- रासायनिक क्रियाओं को उपापचय कहते हैं। यह क्रिया दो रूपों में संपन्न होती है। प्रथम को अपचय(catabolism) कहते हैं, जो कि विनाशात्मक(destructive) क्रिया है। जैसे -शवसन एवं उत्सर्जन। दूसरी- (Constructive) प्रक्रिया है, जिसे उपचय(Anabolism) की संज्ञा प्रदान की जाती है। जैसे पोषण । इसीलिए सजीव कोशिकाओं को 'लघु रासायनिक उद्योगशालाओं'( Miniature Chemical Factory) की उपमा प्रदान की गयी है।

5.शवसन(Respiration)
जीधारियों का मुख्य लक्षण शवसन है। इस क्रिया में जीव वायुमंडल से ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। शवसन के दौरान वसा, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का विघटन होता है और ऊर्जा निकलती है। यह ऊर्जा एटीपी (ATP=Adenosine tri-Phosphate)के रूप में निकलती है जिससे संपूर्ण जैविक क्रियाएं चलती है।

6. प्रजनन(Reproduction)
प्रत्येक जीव प्रजनन- क्रिया के माध्यम से अपने ही सदृश्य जीव उत्पन्न करते हैं। इस क्रिया के द्वारा ही वह अपने वंश को बनायेरखते हैं।

7. पोषण(Nutrition)
प्रत्येक जीव अपने क्रिया-कलापों के लिए आवश्यक ऊर्जा पोषण द्वारा प्राप्त करते हैं। पौधे अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण की विधि से बनाते हैं जबकि जंतु पौधों पर ही आश्रित रहते हैं। निर्जीव वस्तुओं में इस प्रकार से भोजन बनाने का गुण नहीं होता है.

8.अनुकूलन (Adaptation):
जीवो में यह क्षमता होती है कि वह जीवन-संघर्ष में सफल होने के लिए अपनी संरचनाओं एवं कार्य कार्यों में परिवर्तन कर लेते हैं.

9.संवेदनशीलता (Sensitivity):
जीव संवेदनशील होते हैं। वे वातावरण में होने वाले परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा उनके अनुसार अपने को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक परिवर्तन कर लेते हैं.

10. उत्सर्जन (Excretion)
सभी जीवधारियों द्वारा शरीर में उपस्थित हानिकारक पदार्थ CO2, यूरिक अम्ल आदि बाहर निकाले जाते हैं। सजीवों द्वारा संपन्न हुई यह क्रिया उत्सर्जन कल आती है।

11. जीवन-चक्र (life -cycle)
सभी जीवधारी अत्यंत सूक्ष्म भ्रूण के रूप में जीवन प्रारंभ करते हैं तथा पोषण ,वृद्धि तथा संतानोत्पत्ति के बाद नष्ट हो जाते हैं। संतान वृद्धि कर पुनः इसी कर पुनः इसी इसी जीवन -मरण के चक्र को पूरा करते हैं। कछुआ की जीवन अवधि 200- 300 वर्ष ,पीपल वृक्ष का 200 वर्ष, साइकस का 500-1000 वर्ष ,सिकोया वृक्ष 800-1500 वर्ष तक हो सकती है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.