Hindi Grammar, Hindi Vyakaran {हिन्दी व्याकरण का इतिहास, व्याकरण के अंग}

हिन्दी व्याकरण का इतिहास, व्याकरण के अंग

हिन्दी व्याकरण का अर्थ एवं इतिहास  Hindi Vyakaran  Ka Arth Evam Itishas

व्याकरण का अर्थ  Vyakaran  Ka Arth -

  • व्याकृत या विशलेषण करने वाला शास्त्र ‘व्याकरोति भाषामिति व्याकरणम्‘ अर्थात् जो भाषा को विश्लेषित करता है वह व्याकरण है, दूसरे शब्दों में वह विद्या या शास्त्र जो भाषा के पदों (अंग, प्रत्यंग) का विश्लेषण कर प्रकृति प्रतयय द्वारा शब्द निर्माण की प्रक्रिया बताकर उसके स्वरूप को स्पष्ट करता है और शुद्ध उच्चारण करने, समझने तथा लिखने की रीति का नियमन करता है, ‘व्याकरण‘ कहलाता है। व्याकरण भाषा का नियमन (अनुशासन) करता है।

हिन्दी व्याकरण का संक्षिप्त इतिहास  Hindi Vyakaran Ka Itihas-

  • 01. जे.जे. केटलर कृत ‘हिन्दुस्तानी ग्रामर‘ सन 1668
  • 02. जॉन बोर्थविक गिलका्रइस्ट कृत ‘ हिन्दुस्तानी ग्रामर‘ सन् 1790
  • 03. लल्लूजी लाल (भाखा मुंशी) कृत ‘हिन्दी कवायद‘ सन् 1804। यह कृति अब उपलब्ध नहीं है।
  • 04. येट्स कृत ‘हिन्दुस्तानी ग्रामर‘ सन् 1827
  • 05. पादरी आदम कृत ‘ हिन्दी व्याकरण‘ सन् 1827 हिन्दी भाषा में। 
  • 06. पं. श्रीलाल कृत ‘ भाषा चन्द्रोदय‘ सन् 1855 संस्कृत व्याकरण पर आधारित।
  • 07. पं. रामजसन कृत ‘ भाषा तत्वबोधिनी‘ सन 1858।
  • 08. नवीनचन्द्र राय कृत ‘ नवीन चन्द्रोदय‘ सन 1886।
  • 09. राजा शिवप्रसाद ‘ सितारे हिन्द‘ कृत ‘ हिन्दी व्याकरण‘ सन् 1875
  • 10. पं. कामता प्रसाद गुरू कृत ‘ हिन्दी व्याकरण‘ सन् 1921
  • 11. पं. किशोरीदास वाजपेयी कृत ‘हिन्दी शब्दानुशासन‘ सन् 1958
  • 12. भारत सरकार द्वारा प्रकाशित ‘ए बेसिक ग्रामर ऑफ मॉर्डन हिन्दी‘ सन् 1958
  • 13. डॉ. हरदेव बाहरी कृत ‘व्यावहारिक हिन्दी व्याकरण‘ सन् 1980।

व्याकरण के अंग- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, अव्यय व्याकरण के अंग हैं।

(अ) संज्ञा- किसी प्राणी, वस्तु, भाव या स्थान के नाम को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा के पॉच भेद माने गए हैं- व्यक्तिवाचक संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, भाववाचक संज्ञा, समूह वाचक संज्ञा और द्रव्यवाचक संज्ञा।
  • 1. व्यक्तिवाचक संज्ञाा- जो किसी एक व्यक्ति, स्थान या वस्तु का बोध कराती है उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- स्मिता, सिवनी, बैनगंगा, आदि।
  • 2. जातिवाचक संज्ञा- जो संज्ञाएं एक ही प्रकार की वस्तुओं का बोध कराती हैं। यथा- नदी, पर्वत, लड़का, पुस्तक नगर आदि।
  • 3. भाववाचक संज्ञा- किसी भाव, गुण, दशा का बोध कराने वाले शब्द भाववाचक संज्ञा कहते जाते हैं। जैसे प्रेम, मिठास, यौवन, लालिमा आदि।
  • 4. समूहवाचक संज्ञा- समूह का बोध कराने वाली संज्ञाएं, समूहवाचक होती हैं। जैसे- दल, गिरोह, सभा, गुच्छा आदि।
  • 5. द्रव्यवाचक संज्ञा-  किसी द्रव्य या नाप-तौल वाली वस्तु का बोध  द्रव्यवाचक संज्ञा से होता है। यथा सोना, लोहा, दूध, तेल पानी आदि।

संज्ञा में होने वाले परिवर्तन-

जातिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है-

  • जातिवाचक- भाववाचक
  • पुरूष- पुरूषत्व
  • गुरू-  गुरूत्व
  • नारी- नारीत्व


विशेषण से भाववाचक संज्ञा भी प्रत्ययों के योग से बनती है-

  • विशेषण- भाववाचक संज्ञा
  • सुन्दर- सुन्दरता, सौन्दर्य
  • ललित- लालित्य
  • वीर- वीरता

लिंग- शब्द के जिस रूप से यह जाना जाए कि वह स्त्री जाति का है या पुरूष जाति का उसे लिंग कहते हैं। हिन्दी में दो लिंग हैं- स्त्रीलिंग, पुल्लिंग।
पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए प्रयुक्त प्रत्यय हैं-

  • ई- बड़ा-बड़ी, छोटा-छोटी, काला-काली
  • इन- धोबी-धोबिन, माली-मालिन
  • इनी- योगि-योगिनी
  • नी- मोर-मोरनी
  • आनी- जेठ-जेठानी
  • आइन-ठाकुर-ठकुराइन
  • इया- बेटा-बिटिया
1. युग्म शब्दों का लिंग निर्धारण अन्तिम शब्द के लिंग के अनुसार होता है, तथा-

दाल-चावल-पुल्लिंग हैं 
आटा-दाल-स्त्रीलिंग

2. अर्थ की दृष्टि से समान होने पर भी कुछ शब्द लिंग की दृष्टि से भिन्न होते हैं, यथा-
पुल्लिंग - स्त्रीलिंग  
विद्वान्-विदुषी 
कवि-कवयित्री 
महान्-महती 
सौन्दर्य-सुन्दरता 
साधु-साध्वी 
पूजनीय-पूजनीया

वचन- वचन से संख्या का पता चलता है, हिन्दी में दो वचन हैं- एकवचन, बहुवचन

1. कुछ शब्द नित्य (सदैव) बहु-वचन है, यथा-प्राण, दर्शन, आँसू, हस्ताक्षर, बाल
2. कुछ शब्द नित्य एकवचन हैं, यथा-
माल, जनता, सामान, सामग्री, सेना, चाँदी,
3. आदरणीय व्यक्ति के लिए बहुवचन का प्रयोग होता है,
4. एक का बहुवचन अनेक है अतः अनेकों का प्रयोग अशुद्ध माना जाता है, अनेक शुद्ध हैं,
5. पदार्थसूचक शब्द सदैव एकवचन में प्रयुक्त होते हैं,
6. यदि वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों कारक चिहृों से युक्त हों, तो क्रिया सदैव पुल्लिंग एकवचन में होती, तथा- 
  1. मैंने वहाँ राधा को देखा, 
  2. लड़कों ने लड़कियों को पीटा, 

कारक-हिन्दी में आठ कारक हैं-कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण, सम्बोधन,

  • कर्ता-क्रिया को सम्पन्न करने वाला, 
  • कर्म-क्रिया से प्रभावित होने वाला, 
  • करण-जिस उपकरण से क्रिया सम्पन्न की जाए, अर्थात् किया का साधन, 
  • सम्प्रदान-जिसके लिए कोई क्रिया सम्पन्न की जाए, 
  • अपादान- जहाँ अपाय (अलगाव) हो वहाँ ध्रुव (स्थिर) रहने वाली संज्ञा में अपादान कारक होता है,
  • सम्बन्ध-दो पदों का पारस्परिक सम्बन्ध बताया गया हो,
  • अधिकरण- जो क्रिया का आधार (स्थान, समय, अवसर) आदि का बोध कराए, 
  • सम्बोधन- जहाँ किसी को पुकारने के लिए कोई शब्द प्रयुक्त हो, 

(ब) सर्वनाम- संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहे जाते हैं, सर्वनाम के छः भेद माने गए हैं-

  • 1. पुरूषवाचक सर्वनाम-मैं, तुम, वह 
  • 2. निश्चयवाचक सर्वनाम-यह, ये, वह, वे 
  • 3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम-कोई, कुछ 
  • 4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम - जो, सो 
  • 5. प्रश्नवाचक सर्वनाम -कौन, क्या 
  • 6. निजवाचक सर्वनाम -आप 

(स) विशेषण-संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले श्ब्दों को विशेषण कहा जाता है, विशेषण चार प्रकार के होते हैं-

  • 1. गुणवाचक विशेषण- नया, पुराना, लाल, पीला, मोटा, पतला, अच्छा, बुरा, गोल 
  • 2. संख्यावाचक विशेषण-बीस, पचास, कुछ, कई, एक, दो, तिगुना, चौगुना, चारों, आठों, पाँचों, 
  • 3. सार्वनामिक विशेषण- यह, वह, कोई, ऐसा, जैसा, कैसा, 
  • 4. परिमाणवाचक विशेषण- दस किलो, पाँच क्विंटल, बहुत थोड़ा,

विशेषणार्थक प्रत्यय- संज्ञा शब्दों को विशेषण बनाने के लिए उनमें जिन प्रत्ययों को जोड़ा जाता है, वे विशेषणार्थक प्रत्यय कहे जाते हैं, यथा-

प्रत्यय-संज्ञा शब्द -निर्मित विशेषण शब्द 

  • इक- अर्थ- आर्थिक 
  • - -व्यवहार -व्यावहारिक 
  • --व्यवसाय-व्यावसायिक 
  • --समाज -सामाजिक 
  • --धर्म -धार्मिक 
  • ई-धन-धनी 
  • --दान -दानी 
  • ईला-चमक-चमकीला 
  • ईय-भारत-भारतीय 
  • वान-दया-दयावान 
  • --धन -धनवान 
  • मान-बुद्धि-बुद्धिमान 
  • --श्री -श्रीमान 

(द) क्रिया- जिस शब्द से किसी कार्य का होना या करना समझा जाए उसे क्रिया कहते हैं-जैसे-खाना, पीना, रोना, पढ़ना, जाना आदि, 
क्रिया का मूलरूप धातु कहा जाता है, इसमें या जोडकर क्रिया बनती है, ‘खा‘ रही हैं, धातु है, खाना क्रिया है, 
क्रिया के भेद-रचना की दृष्टि से क्रिया के दो भेद हैं-

  • 1. अकर्मक क्रिया 
  • 2. सकर्मक क्रिया  

अकर्मक क्रिया के साथ कर्म नहीं होता तथा उसका फल कर्ता पर पड़ता है, जैसे-सीता, रोती है, , राधा हँसती है, बालक दौड़ा, काले छपे शब्द अकर्मक क्रिया के उदाहरण हैं, 

सकर्मक क्रिया कर्म के साथ आती है, जैस-राधा पुस्तक पढ़ती है, मोहन फल खाता है, पढ़ना सकर्मक क्रियाएं हैं, 
क्रिया के कुछ अन्य भेद इस प्रकार हैं-

1. सहायक क्रिया-सहायक क्रिया मुख्य क्रिया के साथ प्रयुक्त होकर अर्थ को स्पष्ट करने में सहायता देती है, यथा-मैं पुस्तक पढ़ता हँ, काले छपे सहायक क्रिया हैं,

2. पूर्वकालिक क्रिया-जब कर्ता एक क्रिया सम्पन्न करके दूसरी क्रिया करना प्रारम्भ करता है, तब पहली क्रिया को पूर्व-कालिक क्रिया कहते हैं जैसे-वह खाना खाकर सो गया, खाकर पूर्वकालिक क्रिया है,

3. नामबोधक क्रिया-संज्ञा अथवा विशे-षण के साथ क्रिया शब्द जुड़ने से नामबोधक क्रिया बनती है, जैसे-लाठी चलना, रक्त खौलना, पीला, पड़ना,

4. द्विकर्मक क्रिया-जिस क्रिया के दो  कर्म हों जैसे-मैंने छात्रों को गणित पढ़ाया, दो कर्म होने से पढ़ाया क्रिया द्विकर्मक है,

5. संयुक्त क्रिया-दो क्रियाओं के संयोग से बनती है-वह खाने लगा, मैं उठ बैठा, मुझे पढ़ने दो,

6. क्रियार्थक संज्ञा-जब कोई क्रिया संज्ञा की भाँति काम करती है, तब उसे क्रियार्थक संज्ञा कहा जाता है, जैसे-टहलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है,

काल -क्रिया के जिस रूप से कार्य व्यापार के समय तथा उसकी पूर्णता-अपूर्णता को बोध होता है उसे काल कहते हैं, काल के तीन भेद होते हैं-

  • 1. वर्तमानकाल 
  • 2. भूतकाल 
  • 3. भविष्यत्काल 

वर्तमान काल के  पाँच भेद बताए गए हैं-

  • 1. सामान्य वर्तमान-राधा पढ़ती है, 
  • 2. तात्कालिक वर्तमान-राधा पढ़ रही है, 
  • 3. पूर्ण वर्तमान-राधा पढ़ चुकी है,
  • 4. संदिग्ध वर्तमान-राधा पढ़ती होगी, 
  • 5. संभाव्य वर्तमान-राधा पढ़ती हो, 

भूतकाल के छः भेद हैं-

  • 1. सामान्य भूत-वह गया, 
  • 2. आसन्न भूत-वह गया है, 
  • 3. पूर्ण भूत-वह  गया था, 
  • 4. अपूर्ण भूत -वह जा रहा था, 
  • 5. संदिग्ध भूत-वह गया होगा, 
  • 6. हेतुहेतुमद् भूत-वह जाता (क्रिया होने वाली थी, पर हुई नहीं)

भविष्यत्काल इसके  तीन भेद हैं-

  • 1. सामान्य भविष्यत्-मोहन पढ़ेगा 
  • 2. संभाव्य भविष्यत्-सम्भव है कि मोहन पढ़े, 
  • 3. हेतुहेतुमद् भविष्यत्-छात्रतृत्ति मिले, तो मोहन पढ़े, (पहली क्रिया होने पर दूसरी क्रिया होगी)

वाच्य-वाच्य क्रिया का रूपान्तरण है जिससे यह पता चलता है कि वाक्य में कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता है, वाच्य तीन प्रकार के होते हैं-

  • 1. कर्तृवाच्य-जिसमें कर्ता की प्रधानता होती है, जैसे-सीता गाती है, 
  • 2. कर्मवाच्य-जिसमें कर्म की प्रधानता होती है, जैसे-पत्र पढ़ा गया,
  • 3. भाववाच्य-जिसमें भाव की प्रधानता होती है, जैसे-मुझसे बोला नहीं जा रहा है,

प्रयोग-वाक्य की क्रिया कर्ता, कर्म या भाव में से किसका अनुसरण कर रही है  इस आधार पर तीन प्रकार के प्रयोग माने गए हैं,

  • 1. कर्तारि प्रयोग-क्रिया के लिंग वचन कर्तानुसारी होते हैं, जैसे-राम पुस्तक पढ़ता हैं,, सीता गीत गाती हैं, 
  • 2. कर्माणि प्रयोग-क्रिया के लिंग वचन कर्म का अनुसरण करते हैं, जैसे-सीता ने गीत गाया, राम ने पुस्तक पढ़ी, 
  • 3. भावे प्रयोग- वाक्य में क्रिया के लिंग वचन सदैव पुल्लिंग अन्य पुरूष में होते हैं, जैसे- राम से गाया नहीं जाता, सीता से गाया नहीं जाता, लड़कों से गया नहीं जाता, यहाँ कर्ता बदलने से भी क्रिया अपरिवर्तित है, 

(य) अव्यय -अविकारी शब्दों को अव्यय कहते हैं, ये किसी भी स्थिति में बदलते नहीं हैं और ज्यों के त्यों रहते हैं, जैसे-आज, कल, कब, क्यों, किन्तु, परन्तु, तब और अतः

अव्यय चार प्रकार के होते हैं-

  • 1. क्रिया विशेषण-क्रिया की विशेषता बताने वाले शब्द क्रिया विशेषण अव्यय होते हैं, ये स्थानवाचक, कालवाचक, परिमाण-वाचक हो सकते हैं, तथा-यहाँ, वहाँ, इधर, उधर, आज, कल, बहुत, थोड़ा, बस, यथेष्ट, कम, अधिक,
  • 2. रीतिवाचक-ऐसे, वैसे, धीरे, अचानक, कदाचित्, इसलिए, तक, 
  • 3. सम्बन्धबोधक-यथा-वह दिन भर सोता रहा मैं अस्पताल तक गया, 
  • 4. समुच्चयबोधक-किन्तु, परन्तु, इसलिए, और, तथा, एवम्, क्योंकि, अतः, अतएवं, अर्थात्, कि जो, मगर, लेकिन आदि.

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