Alternative Conceptions of Learning in Children {बच्चों में अधिगम की वैकल्पिक अवधारणाएँ }

बच्चों में अधिगम की वैकल्पिक अवधारणाएँ

बच्चों में अधिगम की वैकल्पिक अवधारणाएँ

Alternative Conceptions of Learning in Children

अधिगम का अर्थ Meaning of Learning


  • अधिगम का अर्थ होता है -सीखना 
  • अधिगम एक प्रक्रिया है जो जीवन-पर्यन्त चलती रहती है। एवं जिसके द्वारा हम कुछ ज्ञान अर्जित करते हैं या जिसके द्वारा हमारे व्यवहार में परिवर्तन होता है। 
  • जन्म के तुरन्त बाद से ही व्यक्ति सीखना प्रारम्भ कर देता है। 
  • अधिगम व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है इसके द्वारा जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है। 
  • क्रोे एवं क्रो के अनुसार, सीखना आदतों, ज्ञान एवं अधिवृत्तियों का अर्जन है। इसमें कार्यों को करने के नवीन तरीके सम्मिलित हैं और इसकी शुरूआत व्यक्ति द्वारा किसी भी बाधा को दूर करने अथवा नवीन परिस्थितियों में अपने समायोजन को लेकर होती हैं। इसके माध्यम से व्यवहार में उत्तरोत्तर परिवर्तन होता हरता है। यह व्यक्ति को अपने अधिप्राय अथवा लक्ष्य को पाने में समर्थ बनाती है। 

अधिगम की वैकल्पिक अवधारणाएँ Alternative Conceptions of Learning

अधिगम की आधुनिक वैकल्पि अवधारणाओं को निम्नलिखित दो मुख्य श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है।

  1. व्यवहारवादी साहचर्य सिद्धान्त 
  2. ज्ञानात्मक व क्षेत्र संगठनात्मक सिद्धान्त।

व्यवहारवादी साहचर्य सिद्धान्त Theory of Behaviourism


विविन्न उद्दीपनों के प्रति सीखने वाले की विशेष अनुक्रियाएँ होती हैं इस उद्दीपनों तथा अनुक्रियाओं के साहचर्य से उसके व्यवहार में जो परिवर्तन आते हैं उनकी व्याख्या करना ही इस सिद्धान्त का उद्देश्य होता है। इस प्रकार के सिद्धान्तों के अन्तर्गत थॉर्नडाइक, वाटसन और पावलॉव तथा स्किनर के अधिगम सिद्धान्त आते हैं। 

ज्ञानात्मक व क्षेत्र संगठनात्मक सिद्धान्त Theory of Cognitive Organisation Field

अधिगम का यह सिद्धान्त सीखने की प्रक्रिया में उद्देश्य, अन्तर्दृष्टि और सूझ-बूझ के महत्व को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार के सिद्धान्तों के अन्तर्गत वर्देमीअर, कोहृर एवं लेविन के अधिगम सिद्धान्त आते हैं।

थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त  Thorndike's Theory of Trial and Error

  • थॉर्नडाइक के अधिगम के सिद्धान्त को प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त, उद्दीपन-अनुक्रिया का सिद्धान्त, संयोजनवाद सिद्धान्त तथा अधिगम का सम्बन्ध सिद्धान्त इत्यादि नामों से जाना जाता है। 
  • थॉर्नडाइक ने अपने अधिगम सिद्धान्त से सम्बन्धित एक प्रयोग एक बिल्ली पर किया। उसके एक भूखी बिल्ली को एक विशेष प्रकार के सन्दूक में बन्द कर दिया। इस सन्दूक का दरवाजा एक खटके अथवा चटकनी के दबने से खुलता था। सन्दूक के बाहर मछली का एक टुकड़ा इस प्रकार रखा कि अन्दर से बिल्ली को वह स्पष्ट दिखाई पड़ता रहे। भूखी बिल्ली के लिए मछली का एक टुकड़ा एक उद्दीपन का कार्य करता था। उस टुकड़े को देखकर सन्दूक में बन्द बिल्ली ने अनुक्रिया प्रारम्भ कर दी। बिल्ली ने बाहर निकलने के कई प्रयत्न किए। काफी देर तक बिल्ली सन्दूक के अन्दर ही उछलती-कूदती रही तथा उसके अनेक अनुक्रियाएँ प्रयत्न तथा भूल के आधार पर की। एक बार संयोगवश उसका पंजा फिर सन्दूक के दरवाजे पर पड़ा और वह खुल गया। बिल्ली ने बाहर रखा हुआ मछली का टुकड़ा खा लिया। 
  • थॉर्नडाइक ने उपरोक्त प्रयोग को दोहराया। उसके उसी बिल्ली को भूखा रखकर उसी सन्दूक में बन्द कर दिया। बिल्ली ने फिर पहले जैसे अनुक्रिया प्रारम्भ की तथा संयोगवश उसका पंजा फिर सन्दूक के दरवाजे पर पड़ा और वह बाहर निकलकर मछली का टुकड़ा पाने में कामयाब हो गई। इसी प्रकार थॉर्नडाइक ने इस प्रयोग को कई बार दोहराया। जैसे-जैसे प्रयोग की संख्या बढ़ती गई वैसे-वैसे ही बिल्ली कम प्रयास तथा कम भूल करती हुई बाहर निकलती रहीं एवं बिल्ली की गलत अनुक्रियाओं में कमी होती रही। अन्त में एक समय ऐसा आया कि बिल्ली बिना कोई भूल किए सन्दूक का दरवाजा खोलना सीख गई।
  • उपरोक्त प्रयोगों में आधार पर थॉर्नडाइक ने अधिगम के प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति गलतियाँ कर सकता है, किन्तु बार-बार किए गए प्रयासों के बाद वह सीखने में सफल हो जातपा है। इस प्रक्रिया में उद्दीपक की भी प्रमुख भूमिका होती है, उद्दीपक की भी प्रमुख भूमिका होती है, उद्दीपक व्यक्ति को सीखने के लिए प्रेरित करता है। 

प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त का शैक्षिक महत्व 

  • शिक्षक इस सिद्धान्तके द्वारा ही समझते हैं कि बालक विभिन्न कौशलों को सीखने की प्रक्रिया में गलतियाँ कर सकते हैं। 
  • इस सिद्धान्त के आधार पर बालकों को सीखने के लिए अभिप्रेरित करने पर जोर दिया जाता है। 
  • इस सिद्धान्त के आधार पर बार-बार के अभ्यास से बालक की आदतों में सुधार किया जा सकता है एवं उसकी गलतियों को कम किया जा सकता है। 
  • यह सिद्धान्त अताता है कि सीखने हेतु कार्य को दोहराना आवश्यक है। 

वाटसन एवं पावलॉव का शास्त्रीय अनुबन्ध का सिद्धान्त Classical Conditioning Theory of Watson and Pavlov

वाटसन का प्रयोग Experiment of Watson
  • वाटसन नामक मनोवैज्ञानिक ने स्वयं अपने 11माह के पुत्र अलबर्ट के साथ एक प्रयोग किया। उसे खेलने के लिए एक खरगोश दिया। बच्चे को उस खरगोश के नरम-नरम बालों पर हाथ फेरना अच्छा लगता था। वाटसन ने बच्चे को कुछ दिनों तक ऐसा करने दिया। कुछ समय पश्चात् वाटसन ने ऐसा किया कि जब बच्चा खरगोश को छुता था वह (वाटसन) एक तरह की डरावनी आवाज पैदा करने लगता था। ऐसा वाटसन ने कुछ दिनों तक किया। परिणाम यह हुआ कि डरावानी आवाज के न किए जाने पर भी बच्चे को खरगोश को देखने से ही डर लगने लगा।इस तरह भय की अनुक्रिया खरगोश (कृत्रिम उद्दीपन) के साथ अनुबन्धित हो गई और इस अनुबन्धन के फलस्वरूप उसने खरगोश से डरना सीख लिया।
  • प्रयोग को आगे बढ़ाने पर देखा गया कि बच्चा खरगोश से ही नहीं बल्कि ऐसी सभी चीजों से डरने लगा जिसमें खरगोश के बाल जैसी-नरमी और कोमलता हो। 

पावलॉव का प्रयोग Experiment of Pavlov

  • पावलॉव ने अपने प्रयोग में एक कुत्ते को भूखा रख कर उसे प्रयोग करने वाली मेज के साथ बाँध दिया। उसने उस कुत्ते की लार ग्रन्थियों का ऑपरेशन कर दिया था, जिससे कि उसकी लार की बूँदों को परखनली में एकत्रित कर लार की मात्रा मापी जा सके। 
  • उसने स्वतः चालित यान्त्रिक उपकरणों की सहायता से कुत्ते को भोजन देते की व्यवस्था की। घण्टी बजने के साथ ही कुत्ते के सामने भोजन प्रस्तुत हो जाता था। भोजन को देखकर कुत्ते के मुँह में लार आना स्वाभाविक था। इस लार को पाइप से जुड़े एक परखनली में एकत्रित कर लिया जाता था। इस प्रयोस को कई बार दोहराया गया और एकत्रित लार की मात्रा का माप लिया जाता रहा। 
  • प्रयोग के आखिरी चरण में भोजन न देकर केवल घण्टी की व्यवस्था में भी कुत्ते के मुँह से लार टपकी जिसकी मात्र का माप किया गया। इस प्रयोग के द्वारा यह देखने को मिला कि भोजन सामग्री जैसे प्राकृतिक उद्दीपन के अभाव में भी घण्टी बजने जैसी कृत्रिम उद्दीपन के प्रभाव से कुत्ते ने लार टपकाने जैसी स्वाभाविक अनुक्रिया व्यक्त की। कुत्ते ने यह सीखा था कि जब घण्टी बजती है तब खाना मिलता है। सीखने के इसी प्रभाव के कारण घण्टी बजने पर उसके मुँह से लार निकलना प्रारम्भ हो जाता था। 
  • उपरोक्त प्रयोगों के आधार पर मनोवैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि जब किसी क्रिया को बार-बार दोहराया जाता है, तो अस्वाभाविक उद्दीपक भी वही प्रतिक्रिया देने लगता है जो स्वाभाविक उद्दीपक देता है। 

शास्त्रीय अनुबन्ध के सिद्धान्त का शैक्षिक महत्व 

  1. स्वभाव निर्माण उपरोक्त सिद्धान्त के आधार पर बालक में भय, प्रेम एंव घ्रणा के भाव आसानी से उत्पन्न किए जा सकते हैं। 
  2. अभिवृत्ति का विकास  बालक में विशेश प्रकार की अभिवृत्ति के विकास में उपरोक्त सिद्धान्त शिक्षकों की सहायता करता है। 
  3. मानसिक एवं संवेगात्मक अस्थिरता का उपचार मानसिक एवं संवेगात्मक रूप से अस्थिर बालकों के उपचार में भी उपरोक्त सिद्धान्त प्रभावकारी साबित होता है। 

स्किनर का सक्रिय अनुबन्ध का सिद्धान्त Conditioning Theory of Skinner


  • स्किनर ने अधिगम के जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया उसे सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त कहा जाता है। सक्रिय अनुबन्धन से अभिप्राय एक ऐसी अधिगम प्रक्रिया से है जिसके द्वारा सक्रिय व्यवहार को सुनियोजित पुनर्बलन द्वारा पर्याप्त बल मिल जाने कारण वांछित रूप में जल्दी-जल्दी पुनरावृत्ति होती रहती है। और सीखने वाला अन्त में सिखाने वाले की इच्छा के अनुरूप व्यवहार करने में समर्थ हो जाता है। 
  • स्किनर ने अपने अधिगम के सिद्धान्त के प्रतिपादन  हेतु सन् 1930 में सफेद चूहों पर एक प्रयोग किया। उसने एक विशेष प्रकार का बॉक्स लिखा, जिसे स्किनर बक्सा कहते हैं। इस बक्से में एक छोटा-सा मार्ग था जिसमें एक लीवर लगा हुआ था जिसका सम्बन्ध एक प्याली में खाने का एक टुकड़ा आ जाता था। चूहा जब इस बक्से में उस मार्ग से छोड़ा जाता था, तो लीवर पर उसका पैर पड़ने से खट की आवाज होती थी। तथा वह आवाज को सुनकर उसकी ओर बढ़ता था, जिससे अन्दर रखी प्याली में उसे खाने का टुकड़ा मिल जाता था। वह खाना उस चूहे के लिए पुनर्बलन का कार्य करता था। बक्से में इस प्रकार की व्यवस्था थी कि उसमें अन्य किसी प्रकार का शोर नहीं होता था। इस क्रिया को बार-बार दोहराया गया। खाना चूहे की लीवर दबाने की क्रिया को बल प्रदान करता था। इस क्रिया में चूहा भूखा होने के कारण अधिक सक्रिय रहता था। 

स्किनर के सक्रिय के सक्रिय अनुबन्ध का शैक्षिक महत्व 

  • स्किनर के सिद्धान्त के आधार पर पाठ्य-वस्तु को छोटे-छोटे पदों में बाँटने पर बल दिया जाता है, जिससे अधिगम शीघ्र एवं प्रभावकारी हो जाता है। छात्रों के व्यवहार को वांछित स्वरूप तथा दिशा प्रदान करने में यह सिद्धान्त शिक्षकों की सहयता करता हैं। यह सिद्धान्त बताता है कि यदि छात्रों को उनके प्रयासों के परिमाण का ज्ञान करा दिया जाए तो विद्यार्थी अपने कार्य में अधिक उन्नति कर सकते हैं। 
  • इस सिद्धान्त का प्रयोग अभिक्रमित अधिगम के लिए किया गया है। सक्रिय अनुबन्धन में पुनर्बलन का अत्यधिक महत्व है। पुनर्बलन के अनेक रूप हो सकते हैं, जैसे-दण्ड, पुरस्कार, परिणाम का ज्ञान इत्यादि। 

कोहृर का अन्तदृष्टि  का सिद्धान्त Insight Theory of Kohler

  • अन्तर्दृष्टि अर्थात् सूझ-बूझ के द्वारा सीखने का सिद्धान्त गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिकों की देन है। इन मनोवैज्ञानिकों में वेर्देमीअर, कोहृर, कोफ्फका और लेविन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। गेस्टाल्ट एक जर्मन शब्द है जिसका अर्थ होता है एक आकृति को पूर्णता या समग्रता के रूप में लेना। गेस्टाल्टवादी सिद्धान्त को प्रतिपादित करने के लिए कोहृर ने एक प्रयोग किया।
  • कोहृर ने एक कमरे में सुल्तान नामक एक भूखे चिम्पैंजी को बन्द कर दिया। उसने कमरे की छत में कुछ केले टाँग दिए जोकि चिम्पैंजी की पहुँच के बाहर थे। उसने कमरे में तीन-चार खाली बक्से भी डाल दिए। चिम्पैंजी केलों को देखकर उछल-कूदकर उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न करता है, परन्तु वह केलों को प्राप्त करने में अपने को असफल पाता है। कुछ समय बाद वह फर्श रखे हुए खाली बक्सों को देखता है। पहले वह एक बक्से को केलों के नीचे रखता है तथा वह उस बक्से पर चढ़कर केला प्राप्त करने का प्रयत्न करता है, परन्तु वह केला प्राप्त नहीं कर पाता है। कुछ समय बाद वह दूसरा बक्सा भी पहले बक्से पर रखता है, परन्तु वह अब भी भी केले प्राप्त करने में असफल रहता है। इसके बाद उसे तीसरा बक्सा दिखाई हेता है। वह तीसरे बक्से को दूसरे पर रखकर उस पर चढ़ जाता है तथा केले प्राप्त करने में सफल हो जाता है। यह उसकी अन्तर्दृष्टि ही है कि वह बक्सों को क्रम में रखकर केले को प्राप्त कर लेता है। 
  • एक अन्य प्रयोग में चिम्पैंजी को एक पिंजरे में बन्द कर दिया गया। पिंजरे दो ऐसी छडि़याँ रखी हुई थीं, जिन्हें जोड़कर एक बड़ी छड़ी बनाई जा सकती थी। पिंजरे के बाहर केले रख दिए गए। चिम्पैजी ने हाथ बढ़ाकर केले प्राप्त करने की कोशिश की किन्तु असफल रहा। छडि़यों से खेलते हुए एक बार अचानक दोनों छड़ी आपस में जुड़ गई अब वह बड़ी छड़ी से केले को अपनी ओर खींचने में सफल हो गया। उपरोक्त प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि चिम्पैंजियों ने परिस्थितियों का अपने सम्रग रूप प्रत्यक्षीकरण किया। परिस्थितियों में उपलब्ध सामग्री तथा समस्या के हर पहलू का गम्भीरतापूर्वक विश्लेषण कर उचित सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा की। अन्त में समस्याओं और उनसे सम्बन्धित पहलुओं को तुरन्तु ही समझ कर उनका हल उनके मस्तिष्क में अचानक ही कौंध गया। 

अन्तुदृष्टि सिद्धान्त की शैक्षिक अपयोगिता 

  • जब कुछ पढ़ाया जाए अथवा कुछ सीखने के लिए कहा जाए, तो उसे अपने समग्र रूप में ही बच्चों को सामने प्रस्तुत किया जाए। बालकों के बौद्धिक विकास हेतु उनकी अन्तर्दृष्टि अथवा सूझ-बझू बहुत सहायक होती है। इसलिए इस विधि के द्वारा अधिक-से-अधिक कार्यों को करने के लिए बालकों को प्रोत्साहित करना चाहिए। 
  • पाठ्यक्रम में निर्माण में सूझ-बूझ अथवा अन्तर्दृष्टि प्रक्रिया को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम के विभिन्न अंगों को एकीकृत किया जाता है। यदि सीखने से होने वाले लाभों का पहले से पता चल जाए, तो बालक अपनी बुद्धि तथा सूझ-बूझ का भरपूर प्रयोग करेगा। 

लेविन का अधिगम सम्बन्धी सिद्धान्त Lewin Principle Related  With Leaning 


  • लेविन के अधिगम सम्बन्धी क्षेत्र सिद्धान्त का आधार वातावरण में व्यक्ति की स्थिति है। इस सिद्धान्त के अनुसार सीखना अथवा अधिगम एक सापेक्षिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सीखने वाले में नवीन अन्तर्दृष्टि का विकास होता है अथवा पुरानी में परिवर्तन होता है। व्यक्ति के व्यवहार को समझने हेतु व्यक्ति की स्थिति को उद्देश्यों से सम्बन्धित मानचित्र में निर्धारित करने तथा प्रयत्नों की जानकारी आवश्यक है। इस सिद्धान्त के चार मुख्य तत्व हैं शक्ति, अभिप्रेरणा, जीवन विस्तार एवं अवरोध। 
  • शक्ति व्यक्ति अपने जीवन में सदैव उद्देश्यों से प्रेरणा ग्रहण करता है। उद्देश्य कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक शक्तियाँ रखते हैं। सकारात्मक उद्देश्य वे होते हैं, जिनसे प्रेरित होकर व्यक्ति उस ओर बढ़ता है। नकारात्मक उद्देश्य से व्यक्ति पीछे हटने की कोशिश करता है। अधिगम के इस सिद्धान्त के अनुसार बालक के सम्मुख सकारात्मक तथा नकारात्मक शक्तियाँ उपस्थित रहती हैं जो अधिगम की प्रेरणा देती हैं। 
  • अभिप्रेरणा अभिप्रेरणा वह प्रक्रिया है जिसमें प्रेरक विशिष्ट उद्देश्यों के साथ सम्बन्धित होते हैं और इस प्रेरक की सन्तुष्टि इन उद्देश्यो को प्राप्त करके होती है। 
  • जीवन-विस्तार व्यक्ति की कुछ आवश्यकताएँ तथा योग्यताएँ होती हैं, जोकि व्यक्ति में निहित होती हैं। फिर लेविन ने व्यक्ति की सीमा की अवधारणा की है। इसके पश्चात् वातावरण आता है जोकि जीवन विस्तार की सीमा से घिरा होता है। 
  • अवरोध वातावरण में कुद ऐसी शक्तियाँ होती हैं जो व्यक्ति को उसके उद्देश्य तक पहुँचने में अवरोध उत्पन्न करती हैं तथा व्यक्ति को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने का विरोध करती हैं। यदि व्यक्ति को उद्देश्य की ओर जाने कि लिए अभिप्रेरणा मिलती रहती है, तो वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है  तथा यदि व्यक्ति को बीच में बाधा उत्पन्न होने पर अभिप्रेरणा  नहीं मिलती, तो वह अपना मार्ग छोड़ देता है अथवा बदल देता है। यदि वह निराश होकर बैठ जाता है, तो वह कभी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता है। 

सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता 

  • क्षेत्र सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक अधिगमकर्ता को मात्र एक जैविक प्राणी न समझा जाकर एक ऐसा मनोविज्ञानात्मक व्यक्ति माना जाता है जो किसी एक शिक्षण अधिगम परिस्थिति में अपने  विशिष्ट जीवन दायरे में रह रहा होता है। क्षेत्र सिद्धान्त यह बताता है कि सीखना सभी तरह से एक उद्देश्यपूर्ण और लक्ष्योन्मुख प्रक्रिया है। क्षेत्र सिद्धान्त  की सहायता से शिक्षकों की शिक्षण-अधिगम व्यवस्था के उचित नियोजन, व्यवस्था तथा प्रबन्धीकरण में सहायता मिलती है।

कार्ल रोजर्स का अनुभवजन्य अधिगम सिद्धान्त Empirical Learning Theory of Karl Rosers 


  • कार्ल रोजर्स नामक अमेरिका  मनोवैज्ञानिक  ने प्रौढ़ व्यक्तियों की अधिगम प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए अनुभवजन्य अधिगम  सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उन्होंने अधिगम को दो मुख्य प्रकारों, संज्ञानात्मक अधिगम तथा अनुभवजन्य अधिगम में विभक्त किया। उन्होंने बताया कि संज्ञानात्मक अधिगम को जब  तक उपयोग में नहीं लाया जाए, यह अपने आप में पूरी तरह निरर्थक ही होता है। इस अधिगम का आधार और प्रयोजन मात्र ज्ञान की प्राप्ति ही होता है। शब्द-ज्ञान, ज्ञणितीय ज्ञान, भौगोलिक तथा ऐतिहासिक तथ्यों एवं घटनाओं की जानकारी आदि इसी  प्रकार के अधिगम के अन्तर्गत आते हैं। 
  • अनुभवजन्य अधिगम के बारे में कार्ज रोजर्स ने बताया कि यह मात्र ज्ञानार्जन में ही नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष की सम्पूर्ण प्रगति और उसके कल्याण में विशेष रूप से सहायक सिद्ध होता है। अनुभवजन्य अधिगम में अधिगमकर्ता की अपनी व्यक्तिगत रूचि एवं तल्लीनता का पूरा-पूरा समावेश पाया जाता है। यह सिद्धान्त बताया है कि मानव होने के नाते व्यक्ति में सीखने की स्वाभाविक रूप से ही उत्कट अभिलाषा रहती है और सभी व्यक्ति वृद्धि एवं विकास को प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए अपनी स्वाभाविक रूचि तथा इच्छा को ध्यान में रखते हुए प्रगति पथ पर अग्रसर रहने के लिए कुछ-न-कुछ सीखने रहने की कोशिश करते हैं। 

अनुभवजन्य अधिगम सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता  Educational Utility of Empirical Learning Theory
  • यह सिद्धान्त अधिगम हेतु उचित रूप से लाभदायक एवं सकारात्मक अधिगम परिस्थितियों का आयोजन करने में सहायक होता है। 
  • इस सिद्धान्त की सहायता से छात्रों के लिए अधिगम स्त्रोतों एवं संसाधनों की व्यवस्था करने में सहायता मिलती है। 

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.