1857 Ki Kranti aur MP {1857 का स्वतंत्रता संग्राम व मध्य प्रदेश }

1857 Ka Swantrta Sangram aur MP

1857 का स्वतंत्रता संग्राम व मध्य प्रदेश 

1857 ka Swantra Sangram evam Madhya Pradesh

  • 10 मई 1857 मेरठ(उ.प्र.) से सैनिकों का विद्रोह स्वाधीनता संग्राम प्रारंभ हुआ।

  • 3 जून 1857 म.प्र. में प्रथमतः नीमच में विद्रोह फिर मदसौर, ग्वालियर में विद्रोह।
  • जुलाई 1857 में शिवपुरी, इंदौर महू व सागर में विप्लव।
  • दिल्ली के शाहजादा हुमायूँ ने फिरोजशाह नाम से मंदसौर से स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।
  • मुरार छावनी में विद्रोह 14 जून 1857।
  • शिवपुरी 20 जून 1857।
  • अमझेरा, सरदारपुरा तथा भोपावार में जुलाई 1857 में विद्रोह।
  • अगस्त 1857 में सागर व नर्मदा घाटी के समस्त प्रदेश में असैनिक विद्रोह।
  • ग्वालियर भू-भाग के विद्रोह का नेतृत्व राजा गंगाधर राव की विधवा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे (22 मई, 1858 को काल्पी में) ने किया था। आखिरकार कुछ ही समय बाद 28 जून, 1858 ई. में अंग्रेजों द्वारा इन दोनों की संयुक्त सेना को हरा दिया गया। इस युद्ध में झाँसी की रानी  लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुईं व तात्या टोपे बच निकले। तात्या टोपे को सिंधिया के सामंत द्वारा पकड़कर अंग्रेजों को अप्रैल 1859 ई. में सौंप दिया गया जिसे अंग्रेजों ने शिवपुरी में फाँसी दी। इस घटनाक्रम में अंग्रेजी सत्ता की तरफ से सैनिक दस्ते का नेतृत्व सर हृाूरोज कर रहे थे।
  • म.प्र. में अंग्रेजों की खिलाफत सर्वप्रथम महाकौशल क्षेत्र में 1818 ई. में दिखाई दी जिसका नेतृत्व नागपुर के तत्कालीन देशभक्त शासक अप्पाजी भोंसले द्वारा किया गया क्योंकि अँग्रेजी सेना ने उनसे इस राज्य के मण्डला, बैतूल, छिंदवाडा, सिवनी व नर्मदा घाटी का भूभाग छोड़ देने हेतु बाध्य किया। इसी क्रम में अप्पा साहब द्वारा अरबी सैनिकों की सहायता से मुल्ताई(बैतूल) में अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध युद्ध किया गया। इस युद्ध में उन्हें पराजय हाथ लगी।
  • 1833 ई. में रामगढ़ नरेश जुझार सिंह के पुत्र देवनाथ सिंह ने अंग्रेजों के विरूद्ध खुला विद्रोह किया। अँग्रेजों के कठिन नीतियों व संधियों की रूपरेखा विचित्र होती जा रही थी। जिसके विरोध में भरहूत के मधुकरशाह, चन्द्रपुर (सागर) के जावहर सिंह बंुदेला, हीरापुर के किरेन शाह व मदनपुर के गोंड मुखिया दिल्हन ने 1842 ई. में बगावत की। इसी क्रम में सागर, दमोह, नरसिंहपुर, जबलपुर, मंडला व होशंगाबाद तक के सारे क्षेत्र में विरोध के नारे गुंजायमान थे। परंतु आपसी सामंजस्य न होने के कारण अंग्रेजों द्वारा इस विरोध की अग्नि को बुझाने में कोई दिक्कत नहीं हुई।
  • 3 जून 1857 ई. को नीमच के पैदल व घुड़सवार टुकडि़यों द्वारा रात्रि 9 बचे विद्रोह कर वहाँ की छावनी में आग लगा दी गई।
  • 14 जून, 1857 को ग्वालियर के निकट मुरार छावनी में सैनिक विद्रोह हुआ इस क्रम में सैनिकों द्वारा ग्वालियर व शिवपुरी के बीच की संचार व्यवस्था को भंग कर दिया गया जिस कारण मुम्बई आगरा की संर्पक लाइन भी बाधित हो गयी। ग्वालियर पर कुछ समय के लिए सैनिकों का अधिकार भी हो गया। संकट की इस घड़ी में ग्वालियर के महाराजा सिन्धिया द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को आगरा भेज दिया गया।
  • रानी दुर्गावती के वंशज शंकरशाह व उसके पुत्र द्वारा गढ़ा मण्डला में स्वतंत्रता के लिए आवाजें बुलन्द की गईं। उन्हें तोपों से उड़ाया गया। इसी समय मण्डला के श्रीबहादुर व देवी सिंह ने भी विरोध के स्वर उठाये। श्री बहादुर व देवीसिंह को फाँसी पर लटका दिया गया।
  • 20 जून, 1857 को जब शिवपुरी में विरोध भड़का तो अंग्रेज अधिकारियों को डर से गुना भागना पड़ा। इसी बीच बंुदेलखण्ड के स्थानीय सैनिकों ने भी विद्रोह कर दिया और 1 जुलाई, 1857 ई. की सुबह सादत खाँ के नेतृत्व में इंदौर के लिए जा रही सेना पर विद्रोहियों द्वारा हमला किया गया जिनमें इन दोनों के बीच युद्ध हुआ। इसमें अंग्रेजी सेना को असफलता हाथ लगी। इस युद्ध में होल्कर ने भी विद्रोहियों का अप्रत्यक्ष रूप से साथ दिया। युद्ध की इस घड़ी में अँग्रेजों के सभी अधिकारी (कर्नल टेªर्वन, कैप्टन लुडओ, कैप्टन कीथ, कर्नल ड्यूरेण्ड) इन्दौर में ही मौजूद थे लेकिन विद्रोहियों के आक्रामक रूख के कारण वे सब अपने मित्रों व परिवार जनों के साथ सीहोर चले गए। यहाँ उनकी सहायता भोपाल की बेगम सिकन्दर द्वारा की गईं। कर्नल ड्यूरेण्ड होशंगाबाद के रास्ते पुनः महू छावनी में आये। इसके बाद महू में भी इसी वर्ष जुलाई में विरोध का बाजार गर्म हो गया। विरोध का स्वर जब सैनिकों के पास पहुँचा तो उन्होंने भी इसमें भरपूर साथ दिया। ऐसे समय में दिल्ली के शहजादा हुमायूँ ने मंदसौर जाकर बनावली, मेवाती व सिंधिया सेना के कुछ सैनिकों की सहायता से एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली जो फिरोजशाह के नाम से मंदसौर का राजा बन गया।
  • मण्डलेश्वर की घुड़सवार व पैदल सेना की टुकड़ी ने यहाँ की केन्द्रीय जेल पर हमला बोल दिया। इस घटनाक्रम में बंगाल रेजिमेंट के कैप्टन बेंजामिन हेब्स मारे गये। यहाँ पर भीमा नायक के नेतृत्व में आदिवासी विद्रोह भी हुए थे, जिसे दबाने में अंग्रेजी सेना को कठिन मुकाबलों से गुजरना पड़ा। मंडला जिले की वीरांगानाओं में अवन्तिबाई का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। अवन्तिबाई मंडला जिले की एक छोटी-सी रियासत रामगढ़ की रानी थीं। इन्होंने अँग्रेज सेनापति को क्षमादान देकर बड़ी भूल की थी क्योंकि वही व्यक्ति उनके बलिदान का कारण भी बना। ज्ञातव्य हो कि, रानी अवन्तिबाई के पति की मृत्यु के समय उनका पुत्र नाबालिग था। इस कारण अंग्रेजों द्वारा राज्य की देखभाल हेतु एक तहसीलदार की नियुक्ति की गई थी। यही वजह थी वह अँग्रेजों से सदैव नाराज रहती थी। रानी की सेना ने अपने मंडला पर पड़ी अँग्रेजों की राज्य हड़प नीति की निगाह को भाँपकर उन्हें अँग्रेजों से मुक्त कराने का संकल्प लिया। इसके लिए उसने मंडला की सीमा पर खेड़ी गाँव में अपना मोर्चा स्थापित किया एवं सेनापति वार्डन को क्षाम माँगने हेतु मजबूर कर दिया। इसके बाद रानी रामगढ़ आयी, जहाँ उसने तहसीलदार की हत्या कर अपने राज्य पर अधिकार कर लिया लेकिन इसी बीच वार्डन से संगठित सेना के साथ दिसम्बर 1857 ई. में रामगढ़ पर चढ़ाई कर दी। तीन माह के कड़े संघर्ष के बाद व रीवा राज्य की अतिरिक्त सैन्य व्यवस्था का साथ लेने के बाद रानी पर पुनः आक्रमण तेज कर दिया। इधन रानी के पास सैनिकों व उसके लिए रसद की कमी थी। अतएव वह रामगढ़ छोड़कर देवहारगढ़ के जंगल की ओर चल पड़ी। जब सेनापति वार्डन को यह पता चला तो वह भी सैन्य बल के साथ इसी ओर चल पड़ा। जंगल में दोनों के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया। जब रानी को लगा कि वह स्वयं पकड़ी जा सकती है तो उसने अपनी अंगरक्षिका गिरधारी बाई से कटार लेकर आत्महत्या कर ली तथा गिरधारी बाई ने भी ऐसा ही किया।

1857  Ki Kranti Ke Pramukh Krantikari

  • 1842  जवाहर सिंह बुंदेला , चंद्रपुर।
  • शेख रमजान  अश्वारोही सैन्य टुकड़ी ने सागर में विद्रोह किया।
  • शंकरशाह  इन्होंने तथा इनके पुत्र ने गढ़ा मण्डला की स्वतंत्रता के लिए हथियार उठाया था। इन्हें तोप से उड़ा दिया गया।
  • राजा ठाकुर प्रसाद  राघवगढ़ के किशोर राजा(आजीवन कारावास)।
  • नारायण सिंह- रायपुर  के जमींदार नारायण सिंह ने
  • (सोनाखान)- स्वतंत्रता के लिए हथियार उठाया था। इन्हें फाँसी की सजा मिली।
  • शहादत खान - इंदौर के समीप महू की छावनी में इन्होंने अँग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह का बिगुल बजाया।
  •  रानी लक्ष्मीबाई कालपी में तात्या टोपे व रानी की संयुक्त सेना ने हृाूरोज पर हमला बोला।
  • सुरेन्द्र साय संबलपुर राज्य के शासक, जिन्होंने अंत तक अँग्रेजों के खिलाफ विद्रोह जारी रखा।
  • (उड़ीसा)
  • तात्या टोपे- नाना साहेब के साथ मिलकर संघर्ष किया। इन्हें शिवपुरी में फाँसी दी गई।
  • भीमा नायक - जनजातियों के विद्रोह का नेतृत्व किया।
  • रानी अवंतीबाई - मण्डला जिले की रियासत रामगढ़ की रानी, जिन्होंने अँग्रेजों से जमकर लोहा लिया और अंततः पराजित होने पर आत्मोत्सर्ग कर लिया।

Also Read.....


No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.