राज्य सेवा मुख्य परीक्षा-सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 01 इतिहास-भाग 02 (PCS Mains)

अति लघुत्तरीय प्रश्न
  • 1.लियोनार्डो दा विन्ची 
  • 2. गांधार कला 
  • 3. सर एम.विश्वरैया 
  • 4. लुई सोलहवां 
  • 5. बुलन्द दरवाजा 
  • 6. तोल्कापियम 
  • 7. करो या मरो 
  • 8. कल्पसूत्र 
  • 9. ऑपरेशन जीरो ऑवर 
  • 10.उपनयन संस्कार 
  • 11. बास्तील 
  • 12. दादा अब्दुल्ला 
  • 14. नेचुरल हिस्टोरिका 
  • 15. नटाल इंडियन कांग्रेस 
  • 16. मांटेस्क्यू 
  • 17. निरूक्त 
  • 18. जेबुन्निसा 
  • 19. इरैस्मस 
  • 20.दायभाग 

लियोनार्डो दा विन्ची 
इटनी के निवासी विन्ची, एक महान मूर्तिकार व वास्तुकार थे। मोनालिय, द लास्ट सपर आदि लियोनार्डो दा विन्ची की प्रसिद्ध पेंटिंग हैं। 
गांधार कला 
यह मूर्तिकला की एक शैली है। इस शैली को ‘ग्रीक-बौद्ध शैली‘ भी कहा जाता है। इसका सबसे न्यादा विकास कुषाणों के समय में हुआ है। 
सर एम. विश्वरैया 
इन्होंने 1934 ईस्वी में अपनी पुस्तक ‘द प्लांउ इकोनॉमी फॉर इंडिया‘ में राष्ट्रीय आय को 10 वर्षों में दोगुना करने का लक्ष्य रखा। इन्हें ‘भारत की योजना का जनक‘ कहा जाता है। 
लुई सोलहवां 
यह फ्रांस में बूर्बो वंश का सम्राट था। लुई सोलहवां कहता था। कि ‘मेरी इच्छा ही कानून है‘। इसकी सत्ता पूर्णतः निरंकुश थी। 
बुलन्द दरवाजा 
इसका निर्माण मुगल सम्राट अकबर ने करवाया था। गुजरात विजय की याद में राजधानी फतेहपुर सीकरी में अकबर ने बुलन्द दरवाजें का निर्माण करवाया।
तोल्कापियम 
यह तमिल व्याकरण और अलंकार शास्त्र की प्रसिद्ध पुस्तक है। इसकी रचना तोल्कापियर ने संगम युग में की थी। 
करो या मरो 
यह सेतिहासिक नारा महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के विरूद्ध भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान दिया। इसका अर्थ था, भारत की जनता देश की आजादी के लिए हर संभव तरीका अपनाये, बशर्ते आंदोलन हिंसात्मक न हो। 
कल्पसूत्र 
यह जैन धर्म का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसकी रचना संस्कृत भाषा में हुई है। 
ऑपरेशन जीरो ऑवर 
8 अगस्त 1942 की आधी रात के बाद ही अंग्रेजों हुकुमत ने ऑपरेशन जीरो ऑवर के तहत कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजों ने यह ऑपरेशन, भारत छोड़ो आंदोलन को विफल करने के उद्देश्य से किया था। 
उपनयन संस्कार 
प्राचीन हिंदू समाज में यह एक अनिवार्य संस्कार है। उपनयन संस्कार की आयु, ब्राह्मणों के लिए आठ वर्ष, क्षत्रियों के लिए ग्यारह वर्ष और वैश्यों के लिए बारह वर्ष मानी गई है। 
बास्तील 
निरंकुश राजसत्ता के दौरान यह फ्रांस की एक जेल थी। 14 जुलाई, 1789 ई. को फ्रांस की जनता ने बास्तील जेल को नष्ट कर दिया और कैदियों को मुक्त कर दिया। 
माधवाचार्य 
यह भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख संत थे। इन्होंने शकराचार्य और रामानुज, दोनों के मतों का विरोध किया और अपने मत ‘द्वैतवाद‘ का प्रतिपादन किया। 
दादा अब्दुल्ला 
दक्षिण अफ्रीका में व्यापार करने वाले एक भारतीय व्यापारी थे। इन्ही के मुकदमें को देखने के लिए महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका गए थे।
नेचुरल हिस्टोरिका 
यह प्लिनी की प्रसिद्ध रचना है। इस ग्रंथ से भारतीय पशुओं, पौधों और खनिज पदार्थो की जानकारी मिलती है। 
नटाल इंण्डियन  कांग्रेस 
इसकी स्थापना सन् 1894 में दक्षिण अफ्रीका में हुई। नटाल इण्डियन कांग्रेस के संस्थापक गांधी जी थे।
मांटेस्क्यू 
यह फ्रांस के एक राजनीतिक विचारक व चिंतक थे। ‘द स्पिरिट  ऑफ लॉज‘ इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है। इन्होंने ही शक्ति के पृथक्करण का सिद्वांत दिया। 
निरूक  
यह छः वेदांगों मे से एक है। शब्दों का अर्थ क्यों होता है, यह बताने वाले शास्त्र को निरूक्त कहते हैं। यह एक प्रकार का भाषा विज्ञान है। 
जेबुत्रिसा 
यह मुगल बादशाह औरंगजेब की पुत्री थीं। इन्होंने दिल्ली में ‘बैतुल-उल-उलूम‘ नामक एक स्कूल खुलवाया था।
इरैस्मस 
यह हॉलैण्ड का निवासी था। इसकी प्रसिद्ध रचना ‘ इन द प्रेज ऑफ फाली‘ है। इरैस्मस को ‘ मानववादियों का राजकुमार‘ भी कहा जाता है।
दायभाग 
यह जीमूतवाहन की प्रसिद्ध रचना है। इस ग्रंथ में जीमूतवाहन ने लिखा है कि पिता की मृत्यु के बाद ही पुत्र को उसकी संतत्ति में अधिकार मिलता है। 

उघुत्तरीय प्रश्न 
कालीबंगा
कालीबंगा हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख नगर था। वर्तमान में यह राजस्थान के गंगानगर जिले में अवस्थित है। कालीबंगा का तात्पर्य है-‘ काले रंग की चूडि़यां।‘ कालीबंगा से हड़प्पा पूर्व तथा हड़प्पा काल की संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां बी.घोष, बी.के. थापर तथा बी.बी.लाल के निर्देशन में उत्खनन कराया गया। यहां से लकड़ी के हल, कच्ची ईंटों के मकान, हवन कुण्डों में हड्डियां (पशुबलि के साक्ष्य) और कब्रिस्तान के अवशेष मिले हैं। कालीबंगा के पश्चिमी भाग में ईंटों के चबूतरों के संबंध भी कुछ जानकारी मिली है। 
अयोध्या 
अयोध्या, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में सरयू नदी के तट पर अवस्थित है। इस ऐतिहासिक नगर का प्रचीन काल से ही धार्मिक महत्व था जो वर्तमान तक बना हुआ है। अयोध्या को मंदिरों के नगर के रूप में भी जाना जाता है। अयोध्या का एक और नाम ‘साकेत‘ भी है। धार्मिक ग्रंथों में, इस नगर का वर्णन हिंदुओं के आराध्य भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में किया गया है, जिसके कारण काल में यह कोशल राज्य की राजधानी था। अयोध्या से प्राप्त एक शुंग कालीन लेख के अनुसार पुष्यमित्र शुंग ने यहां दो अश्वमेध यज्ञ किए थे। चीनी यात्री हृवेनसांग ने अपनी यात्रा के दौरान इस नगर को उजड़ा हुआ पाया था। 
मुल्तान 
आधुनिक पाकिस्तान में चिनाब नदी के तट पर स्थित पश्चिमी पंजाब (राज्य) का एक प्रमुख नगर है। मध्यकाल में मुल्तान का एक विशेष सामरिक महत्व रहा है। 1008 ईस्वी में महमूद गजवनी ने इसे जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। 1175 ईस्वी में महमूद गोरी ने गजवनियों से मुल्तान को छीन लिया जो शताब्दियों तक दिल्ली साम्राज्य का हिस्सा बना रहा। बाद में अहमदशाह अब्दाली ने इसे अफगानिस्तान मे मिला लिया, किंतु बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान को अफगानों से छीन लिया। कालांतर में यह अंग्रेजों द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया था। 
वातापी 
आधुनिक कर्नाटक राज्य के बीजापुर जिले में स्थित वर्तमान का बादामी ही प्राचीन काल में वातापी था। यह नगर चालुक्य राजाओं की राजधानी था, जिसकी स्थापना पुलकेशिन प्रथम ने की थी और उसने यहां एक मजबूत दुर्ग का निर्माण करवाया था। आठवीं शताब्दी के मध्य में इस पर राष्ट्रकूटों का अधिकार हो गया। वातापी हिंदू, बौद्ध तथा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था। चालुक्य शासकों ने यहां अनेक निर्माण करवाए। यहां चट्टानों को तराशकर चार स्तंभ युक्त बरमदों का निर्माण हुआ था, जिनमें से तीन हिंदू तथा एक जैन हैं। यहां एक वैष्णव गुफा है, जिसके बरामदे में विष्णु की दो मूर्तियां-अनंतशायी तथा नृसिंह रूप मिलते हैं। गुफाओं की भीतरी दीवारों पर सुंदर चित्रकारियाँ की गई हैं। 
लालकिले का मुकदमा (1945)
आजाद हिंद फौज के गिरफ्तार सैनिकों और अधिकारियों पर अंग्रेजी सरकार ने दिल्ली के लाल किले में नवंबर, 1945 ई. में मुकदमें चलाए। इस मुकदमें के मुख्य अभियुक्त, मेजर शाहनवाज खां, कर्नल प्रेस सहगल और कर्नल गुरू दयाल सिंह पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। इनके बचाव पक्ष के रूप में क्रांग्रेस ने ‘आजाद हिंद फौज अचाओं समिति‘ का गठन किया, जिसमें भूलाभाई देसाई के नेतृत्व में तेग बहादुर सप्रू, कैलाश नाथ काटजू , अरूणा आसफ अली और जवाहरलाल नेहरू प्रमुख वकील थे। इस मुकदमें में अदालत द्वारा इन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई। निर्णय का विरोध हुआ साथ ही पूरे देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई और नारे लगाए गए ‘लाल किले को तोड़ दो, आजाद हिंद फौज को छोड़ दो‘। अंततः लार्ड वेवेल ने विवश होकर अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए इनकी मृत्यु-दंड की सजा को माफ कर दिया। 

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