राज्य सेवा मुख्य परीक्षा-सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 01 इतिहास (PCS Mains)


अति लघुत्तरीय प्रश्न

बकाश्त भूमि 
बकाश्त भूमि, वह भूमि होती थी। जिसे मंदी के दिनों लगान न दे पाने के कारण किसानों ने जमींदारों को दे दिया था। इस तरह की भूमि अधिकार बिहार में होती थी।
सोम प्रकाश 
इसका प्रकाशन प्रसिद्ध समाज सुधारक ईश्रश्चंद्र विद्यासागर ने किया। इसका प्रकाशन बांग्ला भाषा में होता था। 
खारवाड़ विद्रोह 
संथाल विद्रोह के दमन के पश्चात यह विद्रोह 1870 ई. में हुआ। यह विद्रोह भू-राजस्व बंदोबस्त व्यवस्था के विरूद्ध हुआ। 
फजलुल हक 
ये बंगाल कृषक प्रजा पार्टी के नेता थे। 1937 के चुनाव के बाद ये बंगाल के मुख्यमंत्री बने थे। 
मावली 
यह एक पहाड़ी लड़ाकू जाति थी। मावली सैनिक, शिवाजी के अंगरक्षक थे। 
कावसजी नानाभाई 
सूती की पहली मिल1853 ई. में बम्बई में इन्हीं के प्रयासों से स्थापित हई। 1904-05 तक भारत में कुल करीब 266 मिलें स्थापित हो गयीं थीं। 
कलकत्ता मदरसा 
वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता मदरसा की स्थापना की। इस मदरसे में अरबी और फारसी का अध्ययन किया जाता था। 
लार्ड ऑकलैण्ड 
इसने शिक्षा के अधोमुखी निस्पंदन सिद्धांत को प्रतिपादित किया। वैसे मैकाले ने भी इसी सिद्धांत पर कार्य किया, लेकिन यह नीति सरकारी तौर पर ऑकलैण्ड के समय प्रभावी हुई। 
हिन्दू कॉलेज 
इसकी स्थापना कलकत्ता में राजा राममोहन राय तथा डेविड हेयर ने मिलकर की। यही हिन्दू कॉलेज काकांतर में ‘ प्रेसीडेंसी कॉलेज बना।
जुगुल किशोर 
इन्होंने भारत के पहले हिन्ही समाचार-पत्र की शुरूआत की, जिसका नाम ‘उदन्त मार्तण्ड‘ था। इसकी शुरूआत 1826 ई.में हुई। 
अल्लूरी सीताराम राजू 
इन्होंने आंध्र प्रदेश में हुए रम्पा विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने स्वयं को ज्योतिष शक्तियों से युक्त होने का दावा किया था। 
झलकी की संधि 
यह संधि लगभग 1752 ई. में मराठों और निजाम के बीच हुई। इस संधि में निजाम ने मराठों को बरार का आधा क्षेत्र दे दिया। 
वेल्थ ऑफ नेशन 
इस प्रसिद्ध पुस्तक के रचनाकार एडम स्मिथ हैं। यह पुस्कत क्लासिकल अर्थशास्त्र का मूलभूत ग्रन्थ है। 
लियोनिस कार्टिस 
इसे द्धैध शासन का जनक माना जाता है। बंगाल में द्धैध शासन 1765 ई. से शुरू होकर 1772 ई. तक प्रचलन में रहा।
इण्डिया डेब्ट टू इंग्लैण्ड 
यह दादाभाई नौरोजी द्वारा लिखित प्रसिद्ध लेख है। इसी लेख में उन्होंने ‘ धन के बहिर्गमन‘ का सिद्धांत प्रस्तुत किया। 
रजनीपाम दत्त 
यह एक प्रसिद्ध विद्वान् थे। ‘ इण्डिया टुडे‘ इनकी ऐतिहासिक कृति है। इस पुस्तक में राजनीपाम दत्त ने भारतीय औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था का उल्लेखनीय चित्रण किया है। 
सुमन्त 
सुमन्त शिवाजी के अष्टप्रधान के अतंर्गत विदेश मंत्री के रूप में कार्य करता था। इसे ‘दबीर‘ भी कहां जाता था। 
न्यूज पेपर एक्ट 
कर्जन द्वारा सन् 1908 में ‘ न्यूज पेपर एक्ट‘ पारित किया गया। इसके द्वारा मुद्रणालय और उनकी संपत्ति को जब्त करने की व्यवस्था थी, जिनके द्वारा प्रकाशित समाचार-पत्रों से हिंसा या हत्या को बढ़ावा मिलता था। 
कवि वचन सुधा 
इस पत्र का प्रकाशन भारतेंदु हरिश्चंद्र ने सन् 1867 में किया। यह उत्तर प्रदेश से हिंदी भाषा में प्रकाशित होता था। 

लघुउत्तरीय प्रश्न 

चार्ल्स वुड डिस्पैच 
इसे ‘ भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा‘ कहा गया है। 1853 ई. के चार्टर एक्ट में भारत में शिक्षा के विकास की जांच के लिए एक समिति के गठन का प्रावधान किया गया। सर चार्ल्स वुड की अध्यक्षता में गठित समिति ने 1854 ई. में भारत में भावी शिक्षा के लिए एक योजना तैयार की। डिस्पैच की प्रमुख सिफारिशें थीं कि सरकार पाश्चात्य शिक्षा, कला,दर्शन, विज्ञान और साहित्य का  प्रचार करे। उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो लेकिन देशी भाषाओं को भी प्रोत्साहित किया जाए। इसकी अन्य सिफारिशें यह भी थीं कि लंदन विश्वविद्यालय के आधार पर कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में भी तीन विश्वविद्यालय स्थापित किए जाएं, जिनका मुख्य कार्य परीक्षाएं संचालित करना हो। इसमें यह भी सिफारिश की गई थीं कि अध्यापकों के प्रशिक्षण हेतु अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जाए और महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए। 
नागा आंदोलन 
इस आंदोलन की शुरूआत रोंगमेई जदोनांग ने किया। इस आंदोलन का उद्देश्य समाज में एकता लाना, बेढंगे रीति-रिवाजों को समाप्त करना और प्राचीन धर्म को पुनर्जीवित करना आदि था। 29 अगस्त 1931 ई. को सरकार द्वारा जदोनांग को फांसी दे देने के बाद इस आंदोलन को 17 वर्षीय नांगा महिला गैडिनलियु ने अपना नेतृत्व प्रदान किया। गैडिनलियु ने अपने आदिवासी आंदोलन को गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन से जोड़ा और करों तथा कानूनों की अवज्ञा करने का आदेश दिया। जवाहरलाल नेहरू ने गैडिनलियु को ‘रानी‘ की उपाधि से सम्मानित किया। गैडिनलियु ने जदोनांग के धार्मिक विचारों के आधार पर ‘ हेर्का पंथ‘ की स्थापना की। 
रैले कमीशन 
लॉर्ड कर्जन ने शिक्षा से संबंधित मैकाले की योजना की आलोजना की। कर्जन द्वारा शिक्षा में लाने वाले परिवर्तनों का उद्देश्य शैक्षणिक कम और राजनीतिक ज्यादा था। 1901 में कर्जन ने भारत के उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालय अधिकारियों का एक सम्मेलन शिमला में बुलाया। इस सम्मेलन में पारित प्रस्ताव ‘शिमला प्रस्ताव‘ के नाम से जाना गया। शिमला सम्मेलन में पारित प्रस्तावों की कड़ी आलोचनाओं से विवश होकर 1902 में थॉमस रैले की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया गया। इस ‘रैले कमीशन‘ के नाम से जाना जाता है।
वहाबी आंदोलन (1820-70)
यह आंदोलन मूल रूप से मुस्लिम सुधारवादी आंदोलन था जो उत्तर-पश्चिम, पूर्वी तथा मध्य भारत में सक्रिय था। वहाबी आंदोलन का मुख्य था-मुस्लिम समाज को भ्रष्ट धार्मिक तौर-तरीकों से मुक्त करना। इस आंदोलन के संस्थापक अब्दुल वहाब थे। भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद बरेलवी के कारण लोकप्रियता मिली। सैदय अहमद, पंजाब में सिखों को और बंगाल में अंग्रेजों का अपदस्थ कर मुस्लिम शक्ति की पुनर्स्थापना करना चाहते थे। सैदय अहमद की मृत्यु के बाद वहाबी आंदोलन का मुख्य केंद्र पटना बन गया। आंदोलन के अन्य महत्वपूर्ण नेताओं में विलायत अली, इनायत अली, मौवली कासिम अब्दुल्ला आदि शामिल थे।  
महालवाड़ी बन्दोबस्त 
भू-राजस्व की यह व्यवस्था, स्थायी और रैय्यतवाड़ी बन्दोस्त की असफलता के बाद लागू की गई। इस व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण ‘महाल‘ या पूरे गांव के उत्पादन के आधार पर किया जाता था और महाल के सभी कृषक भू-स्वामियों के भू-राजस्व का निर्धारण संयुक्त रूप से किया जाता था, जिसमें गांव के लोग अपने जनप्रतिनिधियों या मुखिया के द्वारा एक तय समय-सीमा के भीतर कर की अदायगी की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते थे। यह व्यवस्था ब्रिटिश भारत के कुल क्षेत्रफल के तीस प्रतिशत हिस्से पर लागू थी। इसके अंतर्गत संयुक्त प्रांत, अवध, मध्य प्रांत, पंजाब के कुछ हिस्से तथा दक्कन के कुछ जिले शामिल थे। यह व्यवस्था बुरी तरह असफल हुई, क्योंकि इसमें लगान का निर्धारण अनुमान पर आधारित था और इसकी विसंगयों का लाभ उठाकर ब्रिटिश कंपनी के अधिकारी अपनी जेब भरने लगे। लगान वसूली के लिए कंपनी को लगान से ज्यादा ‘लगान वसूली‘ के लिए खर्च करना पड़ता था। 
ताना भगत आंदोलन 
इस आंदोलन की शुरूआत दूसरे विश्वयुद्ध के बाद छोटा नागपुर में हुई। इस आंदोलन को भगत आंदोलन इसलिए कहा गया, क्योंकि इसका नेतृत्व आदिवासियों के बीच के उन लोगों ने भगत आंदोलन को जतरा भगत, बलराम भगत, एक देवमेनिया भगत (महिला) ने अपना नेतृत्व प्रदान किया। इस आदिवासी आंदोलनकारियों के बीच गांधीवादी कार्यकर्ताओं ने अपने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से प्रवेश किया। 1920 के दशक में ताना भगतों ने कांग्रेस के नेतृत्व में शराब की दुकानों पर धरना देकर, सत्याग्रह और प्रदर्शनों में हिस्सा लेकर भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। 
सैडलर आयोग 
1917 ईस्वी में सरकार माइकल सैडलर के नेतृत्व में कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन के लिए एक आयोग की नियुक्त की गई, जिसे ‘सैडलर आयोग‘ के नाम से जाना गया। सैडलर आयोग में दो भारतीय सदस्य भी थे। इन भारतीय सदस्यों में आशुतोष मुखर्जी और डॉ. लियाद्दीन अहमद शामिल थे। सैडलर आयोग में 1950 के विश्वविद्यालय अधिनियम की कड़ी आलोचना करते हुए कुछ सिफारिशें प्रस्तुत की, जिनमें इंटमीडिएट परीक्षाओं के संचालन के लिए माध्यमिक बोर्ड का गठन, इंटरनमीडिएट कक्षाएं विश्वविद्यालय से अलग होनी चाहिए, कलकत्ता विश्वविद्यालय को भारत सरकार के नियंत्रण से मुक्त कर बंगाल सरकार के अधीन किया जाना चाहिए,स्नातक स्तर पर पाठयक्रम, तीन वर्ष का हो, सभी विश्वविद्यालयों में एक कुलपति की नियुक्ति की जाये, जैसी अन्य सिफारिशें शामिल थीं। 
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 
प्रश्नः दादाभाई नौरोजी और उनके आर्थिक विचारों को स्पष्ट किजिए?
उत्तर: भारत की आर्थिक दशा का दादाभाई नौरोजी ने आर सी दत्त की ही तरह मर्मिक वर्णन किया है। दादाभाई नौरोजी कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने भारतीय एकता के विकास के लिए कार्य किया। दादाभाई नौरोजी ने इंग्लैंड और हिंदूस्तान में भारतीय हितों के लिए काम किया और अंत में कलकत्ता कांग्रेस (1906) के अध्यक्ष पद से यह घोषणा की कि स्वराज ही कांग्रेस का लक्ष्य है। उन्होंने भारत और इंग्लैंड में लगातार प्रेस और पार्लियामेंट के माध्यम से भारतीय हितों के लिए कार्य किया। दादाभाई नौरोजी, इंग्लैंड की कॉमन सभा के पहले भारतीय सदस्य थे। दादाभाई नौरोजी ने सरकार की शोषणकारी, विभाजन को प्रोत्साहन देने वाली और आर्थिक दृष्टि से नष्ट कर देने वाली नीतियों का अपने विभिन्न भाषणों और लेखों के द्वारा इंग्लैड और हिंदूस्तान में पर्दाफाश किया गया। अपनी महान कृति में नौरोजी के विचार संग्रहित हैं। जिसका नाम हैं, ‘ पॉवर्टी एंड अन ब्रिटिश रूल इन इंडिया‘। केवल यह किताब ही दादाभाई नौरोजी को अमर बनाने के लिए पर्याप्त है, मगर इससे बढ़कर उनकी देन बहुत अधिक है। नौरोजी के गरीबी के मूलभूत कारणों को ढूंढ़ निकाला और निर्भयतापूर्वक विदेशियों द्वारा  भारत के प्रशासन के बुरे परिमाणों को उजागर किया और उन्हें दूर करने के लिए सुझाव दिया। दादाभाई नौरोजी भू-राजस्व की वसूली के लिए जो निर्धारित यंत्र थे, उससे भी असंतुष्ट थे क्योंकि वह सस्ता नहीं था। इस  तरह से दादाभाई नौरोजी ने ‘आर्थिक शोषण‘ (इकोनॉमिक ड्रेन) के सिद्धांत को सबके सामने रखा। मसलन, दूसरे-दूसरे देश जो भी राजस्व वसूल करते थे, उसका पूरा राजस्व देश में ही रहता था और लोगों के कल्याण पर खर्च होता था, इसलिए राष्ट्रीय पूंजी में कोई कमी नहीं होती थी। वहीं दूसरी ओर विदेशी शासन के अधीन होने की वजह से भारत से विशाल धनराशि इंग्लैड चली जाती थी जिससे हर वर्ष राष्ट्रीय पूंजी में गिरावट हो रही थी। दादाभाई नौरोजी ने आंकड़ों के आधार पर यह सिद्ध किया कि प्रतिवर्ष भारत अधिक से अधिक गरीबी की गर्त में गिरता जा रहा है। इसके लिए ब्रिटिश नीतियां उत्तरदायी हैं।




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