राजपूत वंश का इतिहास | Rajpur Vansh ka Itiahs

rajput vansh for mp psc gk

राजपूत वंश

  • हर्षवर्द्धन की मृत्यु से लेकर 12वीं सदी तक समय उत्तर भारत के इतिहास में ‘ राजपूत काल ‘ के नाम से प्रसिद्ध है। यह काल सामान्यतः 700-1200 तक माना जाता है।
राजपूतों  की उपाधि के संबंध में दो मत दिये जाते हैः
  • 01 विदेशी उत्पत्ति का मत एवं 
  • 02  भारतीय उत्पत्ति का मत।

विदेशी उत्पत्ति का मतः
कर्नल   जेम्स टाड, स्मिथ एवं भडारकर इस मत के समर्थन हैं। इस मत के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशियों से हुई है।
देशी उत्पत्ति का मतः
  • सी.वी वैद्य जी.एस. ओझा आदि इस मत के समर्थन हैं। इसके अनुसार राजपूत भारतीय क्षत्रियों की संतान थे।
  • चंदबरदाई की पुस्तक पृथ्वीराज रासों में क्षात्रियों की उत्पत्ति अग्निकुंड से हुई बतायी गयी है जिसमें-परमार, प्रतिहार, चौहान तथा सोलंकी सम्मिलित है।

गुर्जर-प्रतिहार वंश
  • गुर्जरों की साखा से संबंधित होने के करण इसे गुर्जर-प्रतिहार ‘ कहा जाता है। गुर्जर-प्रतिहारों ने 8 वीं शताब्दी से लेकर 11 वीं शताब्दी के प्रारंभ तक शासन किया।
  • इस वंश की स्थापना नागभट्ट प्रथम (730-756  ई.) ने की थी।
  • नागभट्ट के बाद वत्सराज (775-885 ई.) शासक बना। इसे प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहां जाता है।
  • वत्सराज के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई. ) शासक बना। वह अपने वंश का महान शासक था जिसमें उत्तर भारत के एक बड़े क्षेत्र पर अपना राज्य स्थापित किया था। इसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।

मिहिरभोज प्रथम 836-885 ई.
  • इस वंश का सबसे प्रतापी सम्राट था। इसने आदिवाराह ‘ की उपाधि धारण की। मिहिरभोज प्रथम के बाद उसका पुत्र महेंद्रपाल प्रथम (885-910 ई. ) राजा बना। यह साम्रज्य निर्माता महान  कुशल प्रशासक तथा विद्या एवं साहित्य का महान संरक्षक था।
  • महेंद्र पाल प्रथम की राजसभा में प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर निवास करतें थे। जो उसके राजगुरू भी। राजशेखर ने बालरामायणकाव्यमीमांसा, कर्पूरमञजरी, विद्वाशालभंजिका, भुवनकोश तथा हरविलास जैसे प्रसिद्ध ग्रथों की रचना की।
  • मुसलमान लेखक अल-मसुदी महिपाल के समय 915-916  ईस्वी में भारत यात्रा पर आया था।
  • विजयपाल इस वंश का अंतिम शासक था। इसके बाद गुर्जर-प्रतिहारों के साम्राज्य पर गहढ़वालों ने अधिकार कर लिया।

त्रिपुरी का कलचुरि चेदि राजवंश
  • चंदेल राज्य के दक्षिण में चेदि के कलचुरियों का राज्य था जिसकी राजधानी त्रिपुरी ‘ था। इसकी पहचान म.प्र. के जबलपुर जिले में स्थित तेवर नामक स्थान से की जाती है। इसे हैहैयवंश भी कहते हैं।
  • कलचुरि वंश का पहला शासक कोक्कल प्रथम था।
  • युवराज प्रथम,लक्ष्मणराज शकरगण द्वितीय, युवराज द्वितीय, कोक्कल द्वितीय आदि इस वंश के अन्य शासक थे।
  • गांगेयदेव विक्रमादित्य कलचुरि वंश का एक प्रतापी शासक था।
  • गांगेयदेव के बाद उसका पुत्र कर्णदेव शासक बना। इसने 1041 से 1070  ईस्वी तक शासन किया। यह कलचुरि वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था।
  • कर्णदेव ने बनारस में कर्णमेरू नामक शैव मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • 13 वीं सदी में चंदेलों ने इसके राज्य पर अधिकार कर लिया।

मालवा का परमार राजवंश
  • मालवा  के परमार वंश की स्थापना 10 वीं शताब्दी के प्रथम चरण में कृष्णराज अथवा उपेंद्र ने की थी। धारा नामक नगरी परमार वंशीय शासकों की राजधानी थी।
  • हर्ष अथवा सीयक द्वितीय (945-972  ई. ) परमारों का एक शक्तिशाली शासक था।
  • सीयक के बाद मुञजक शासक बनाजो इतिहास में ‘ वाक्पति मुञज ने 992 से 998  ईस्वी तक शासन किया।
  • इस वंश के शासक सिंधुराज की उपाधि ‘ नवसहशांक ‘ थी।
  • सिंधुराज के बाद उसका पुत्र भोज ( 1010-1060  ईस्वी ) परमार वंश का शासक बना। वह इस वंश का सबसे प्रतापी सम्राट था।
  • भोज ने ‘ कविराज ‘ की उपाधि धारण की। उसने अपनी राजधानी ‘ धारा ‘ को बनाया तथा उसे विद्या एवं कला का प्रसिद्ध केंद्र बनाया। उसने यहां अनेक मंदिरों का निर्माण कराया, जिसमें सरस्वती मंदिर प्रमुख हैं।
  • भोज ने कई पुस्तकें भी लिखीं, जैसे-व्याकरण, श्रृंगार, प्रकाश, कूर्मशतक, भोजचम्पू आदि।
  • भोज  ने भोपाल के दक्षिण-पूर्व में 250 वर्ग मील लंबी एक्र झील का निर्माण कराया जो भोजराज के नाम से प्रसिद्ध हुर्इ्र।
  • धारा में सरस्वती मंदिर मे समीप भोज ने एक विजय स्तंभ की स्थापना की तथा भोजपुर नामक नगर बसाया। तेरहवीं शताब्दी में तोमरों ने परमारों के राज्य पर अधिकर कर लिया।

गुजरात का सोलंकी वंश
  • गुजरात के सोलंकी वंश स्थापना मूलराज प्रथम (941-995  ई. ) ने की थी।
  • भीमदेव प्रथम इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। भीम के समय में ही गुजरात में मशहूर गजनवी का आक्रमण हुआ तथा उसने सोमनाथ के मंदिर को लूटा। भीम प्रथम ने भट्टारिका तथा पत्तनदेव में मंदिरों का निर्माण करवाया। उसके सामंत विमल ने आबू पर्वत पर दिलवाड़ा के प्रसिद्ध मंदिर बनवाये।

जयसिंह सिद्धराज ( 1094-1143  ई. )
  • इस वंश का प्रतापी राजा था। यह विद्या का महान संरक्षक था। उसने जैन विद्वान हेमचंद्र को संरक्षण दिया।
  • जयसिंह ने आबू पर्वत पर एक मंडप तथा सिद्धपुर में रूद्रमहाकाल के मंदिर का निर्माण करवाया।
  • भीमदे द्वितीय के समय 1178  ई. में मुसलमानों ने आक्रमण किया। यह गुजरात के सोलंकियों का अंतिम शासक था।
  • भीमदेव द्वितीय के बाद उसके एक मंत्री लवणप्रसाद ने गुजरात में बंघेल वंश की स्थापना की। 1240 ईस्वी के लगभग उसके उत्तराधिकारियों ने अन्हिलवाड़ पर कब्जा कर लिया। बघेल वंश ने गुजरात के स्वतंत्र हिंदू राज्य को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया।

जेजाक भुक्ति के चंदेल
  • जेजाक भुक्ति ( बुंदेलखण्ड़ ) के चंदेल वंश की स्थापना नन्नुक ने की थी।
  • यशोवर्मन (925-950 ई. ) इस वंश एक प्रमुख शासक था। इसने खजुराहो के प्रसिद्ध ‘ चतुर्भुज मंदिर का निर्माण किया तथा उसमें ‘ विष्णु ‘ प्रतिमा स्थापित की।
  • धंगदेव ( 950-1002  ई. ) भी इस वंश का एक प्रमुख शासक था। जिसमें चंदेलों को प्रतिहारों से स्वतंत्र कर दिया और इसीलिए इसे चंदेल वंश का वास्तविक संस्थापक भी कहा जाता है।
  • धंगदेव के समय विश्वनाथ का उत्कृष्ट मंदिर जिननाथ एवं वैंद्यनाथ के मंदिरों का निर्माण हुआ। धंगदेव ने 1002  ई. में संगम ( प्रयाग ) में जल समाधि ले ली थी। गंडदेव एवं विद्याधर भी चंदेल शासक थे।
  • परमल या परमर्दिदेव चंदेलों का अंतिम प्रमुख शासक था। आल्हा एवं ऊदल नामक दो प्रसिद्ध सेनानायक इसी के थे।
  • चंदेलों के तीन प्रधान नगर थे- कालिंजर महोबा खजुराहो। चंदेलों के समय ही खजुराहो में लगभग 30  मंदिरों का निर्माण किया गया। नागर शैली में निर्मित ये मंदिर वैष्णव शैव संप्रदायों एवं जैन धर्म से संबंधित थे। खजुराहों के मंदिरों में 116 फीट ऊंचा ‘ कंडारिया महादेव का मंदिर सबसे अच्छा माना जाता है।
गहड़वाल वंश
  • गहड़वाल वंश की स्थापना चन्द्रदेव ( 1080-85  ई. ) ने की थी। इसकी राजधानी कन्नौज थी। उसने बनारस को गहड़वालों की द्वितीय राजधानी बनाया।
  • चंद्रदेव ने मुस्लिम आक्रमणों के खिलाफ युद्ध के खर्चो की अदायगी के लिए अथवा मुसलमानों को वार्षिक भुगतान करने के लिए तुरूष्कदण्ड ‘ नामक कर लगाया।
  • इस वंश का एक प्रमुख शासक गोविंद चंद्र (1114-1154 ई. ) था। इसका मंत्री लक्ष्मीचंद्र (लक्ष्मीधर) साहित्यिक गातिविधियों के लिए प्रसिद्ध हैजिसमें दो प्रमुख ग्रंथ ‘ कृत्य कल्पतरू ‘ एवं ‘ कल्पद्रुम‘ की रचना की।
  • जयचंद्र अंतिम प्रसिद्ध गहड़वाल शासक था।
  • जयचंद्र को 1193  के चंदावर के युद्ध में गौरी ने हरा दिया। इसके बाद गहड़वालों के साम्राज्य पर तुर्को ने अधिकार कर लिया।

चौहान वंश
  • पृथ्वीराज चौहान चौहानों का एक सबसे प्रसिद्ध शासक था। इसको ‘ राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता है।
  • इसने कन्नौज के राजा रामचंद्र के समय उसकी पुत्री संयोगिता का अपहरण कर लिया था।
  • दिल्ली के तोमर
  • तोमर राजपूतों की शाखा थी  जिसने दिल्ली क्षेत्र पर 11 वीं शताब्दी में शासन किया था।
  • तोमर शासक अनंगपाल ने ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में दिल्ली नगर की स्थापना की थी। इस समय दिल्ली को ढिल्लिका  कहते थे।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.