प्रायद्वीपीय पठार


  • प्रायद्वीपीय भारत के पठार के अंतर्गत निम्नलिखित संरचनाएं शामिल हैं।
  • 1- अरावली पर्वत
  • 2- मालवा पठार
  • 3- विंध्य पर्वत


  • प्रायद्वीपीय पठार से पूर्व तथा पश्चिम की ओर बहुत सारी नदियों ने एक लंबे समय तक समुद्र में तथा बाहर के क्षेत्रों में अवसादों का जमाव किया जिसके कारण समुद्र का पानी पीछे हट गया तथा इसी कारण प्रायद्वीपीय पठार के दोनों तरफ समतल तट पाए जाते हैं जिसे तटीय मैदान कहा जाता है।
  • प्रायद्वीपीय पठार का भाग गोंडवानालैंड का भाग है तथा अफ्रीका से टूटकर उत्तर पूर्व की ओर प्रवाहित हुआ।

  • प्रायद्वीपीय पठार का भाग हिमालय से बहुत प्राचीन है तथा इसके उत्तर पूर्व में प्रवाहित होने के कारण ही टेथिस सागर में करोड़ों वर्षों में जमा मलवा या अवसादी चट्टानों में दबाव पढ़ा जिससे उसमें वलन (मोड़) पड गया जिससे हिमालय के तीनों श्रृंखलाओं का रचना हुआ। हिमालय का उत्थान अभी भी जारी है क्योंकि प्रायद्वीपीय भारतीय भूखंड अभी भी उत्तर पूर्व की ओर अभी भी अग्रसर हो रहा है जिसके कारण हिमालय का उत्थान अभी भी जारी है। यही कारण है कि हिमालय पर अभी भी भूकंप आते हैं हिमालय आंतरिक रूप से अस्थिर है जबकि प्रायद्वीपीय भारत का पठार विवर्तनिकी रूप से पूरी तरह स्थिर है इसी कारण प्रायद्वीपीय धरती के अंदर होने वाली गतिविधि को विवर्तनिकी गतिविधि कहते हैं।
  • नीलगिरी पर्वत का विस्तार – तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक

अरावली पर्वत


  •  प्रायद्वीपीय भारत के पठार के उत्तर पश्चिम सिरे पर अरावली पर्वत का विस्तार है।
  • अरावली पर्वत गुजरात के पालनपुर से लेकर दिल्ली के मजनू हिल तक विस्तृत है।  लंबाई = लगभग 800 किलोमीटर
  • अरावली का अधिकतम लं० राजस्थान राज्य में है।
  •  राजस्थान में अरावली के दक्षिणी भाग को जर्रा पहाड़ी के नाम से दिल्ली में इसे दिल्ली रिज के नाम से जाना जाता है।
  • अरावली का सर्वोच्च शिखर गुरु शिखर राजस्थान के माउंट आबू में है।
  • माउंट आबू में प्रसिद्ध जैन मंदिर दिलवाड़ा मंदिर स्थित है।
  • अरावली पर्वत दुनिया का सबसे प्राचीन वलित पर्वत है।
  • बनास नदी अरावली को पश्चिम से पूर्व में पार करती है और चंबल नदी में मिल जाती है।

मालवा का पठार


  • मालवा पठार अरावली के दक्षिण में तथा विंध्य पर्वत के उत्तर में स्थित है।
  •  मालवा पठार का ढाल उत्तर की तरफ है।
  • मालवा पठार का निर्माण ज्वालामुखी लावा से हुआ है अर्थात बेसाल्ट चट्टानों से हुआ है।
  • लावा के जमने से निर्मित चट्टान को बेसाल्ट चट्टान कहते हैं।
  • यही कारण है कि मालवा पठार पर काली मिट्टी पाई जाती है।
  •  मालवा पठार का ढाल उत्तर की तरफ है अतः मालवा पठार से बहने वाली नदियां चंबल, काली सिंध, तथा बेतवा नदी उत्तर की ओर प्रवाहित होती है। चंबल और उसकी सहायक नदियों ने मालवा पठार को बहुत अधिक अपरदित कर दिया है, जिसके कारण मालवा पठार पर बहुत सारे गहरी एवं चौड़ी नाली की आकृति बन गई है एवं मालवा पठार बहुत उबड़ खाबड़ हो गया है। ऐसी भूमि को उत्खात भूमि या बिहड़ भूमि कहते हैं।
विंध्य पर्वत श्रेणी

  •  विंध्य पर्वत श्रेणी मालवा पठार के दक्षिण में है।
  •  विंध्य पर्वत श्रेणी का विस्तार पूरी तरह से मध्य प्रदेश में है।
  •  विंध्य पर्वत के रूप में भांडरे पहाड़ी तथा कैमूर पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।
  •  विंध्य पर्वत के दक्षिण में नर्मदा भ्रंश घाटी है।
  •  नर्मदा भ्रंश घाटी के दक्षिण में सतपुड़ा पहाड़ी है।
  • सतपुड़ा पहाड़ी के दक्षिण में तापी भ्रंश घाटी है।

सतपुड़ा पर्वत श्रेणी 
  • सतपुड़ा पर्वत एकमात्र ब्लॉक पर्वत का उदाहरण है।
  • सतपुड़ा पर्वत के उत्तर में नर्मदा भ्रंश घाटी है तथा दक्षिण में तापी नदी की भ्रंश घाटी है।
  • ब्लॉक पर्वत = दो भ्रंश घाटी यों के बीच में स्थित पर्वत श्रेणी को ब्लॉक पर्वत श्रेणी कहते हैं।
  • ऐसा भूभाग जिसके दोनों तरफ भ्रंश घाटी होने के कारण वह पर्वत की तरह दिखाई देने लगता है ब्लॉक पर्वत कहलाता है।
  • सतपुड़ा पर्वत पश्चिम से पूर्व की ओर तीन पहाड़ियों के रूप में विस्तृत है।
  • सबसे पश्चिमी पहाड़ी – राजपीपला पहाड़ी
  • बीच वाला पहाड़ी – महादेव पहाड़ी – धूपगढ़ चोटी सबसे पूर्वी पहाड़ी – मैकाल पहाड़ी – अमरकंटक चोटी
  • सतपूड़ा की सबसे ऊंची वाली चोटी धूपगढ़ चोटी महादेव पहाड़ी पर है ।
  •  मैकाल पहाड़ी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर है।
ब्रम्हपुत्र और गंगा नदियों ने अपने जलोढ़ निक्षेपों से भर दिया है इस गैप को राजमहल गारो गैप तथा मालदा गैप कहते हैं।
शिलांग पठार
शिलांग पठार के अंतर्गत 5 पहाड़ियां शामिल है।
1- गारो  – नोकरेक
2- खासी – मेघालय
3- जयंतिया
4- मिकिर – असम
5- रेंगमा

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